जिधर भी देखा दर्द ही दर्द मिले ,
अपने साए से हुए , चेहरे सर्द मिले ,
किया बेगाना सरे राह हमको ,
मिले भी तो , ऐसे हमदर्द मिले ,
था ज़माना गुलाबी कभी जिनका ,
वही दर्द ए दिल के मारे , आज जर्द मिले ,
गुमान ना था इस कदर कहर नाज़िल होगा ,
फाक़त खंडहर , वो भी ज़रज़र मिले ,
आज़िज़ हे हम अपने ही लहजे से ,
दुरुस्त जिनको समझा , वोही ख़ुदग़र्ज़ मिले ,
अश्क
मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
भाई बुजेश जी ने इस मंच के उद्येश्य को मान दिया है. हम सभी उनके आभारी हैं.
काव्याभिव्यक्ति यदि किसी काव्य मान्यता या रचना परिपाटी के गिर्द भी जाती है तो इसका अर्थ है कि रचनाकार इच्छुक तो है किंतु अभी तक सम्यक अभ्यास हेतु तैयार नहीं हुआ है. आदरणीय, अनुरोध है, आप इस तथ्य को सार्थक दिशा दें.
सादर
आदरणीय अश्क जी सुन्दर रचना, बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.
dur tak koi nhi ..tanhaiyo k sath h...
नीरज भाई ,
सीखना तो जीवन पर्यंत निरंतरता हे ,
मेरा उद्देश्य सिर्फ़ अपने मन को समझाना हे ,
यदि तकनीक मे उलझ गया तो भाव चला जाएगा ,
जो मेरा मन स्वीकार नहीं करता ,
मुझे तो सिर्फ़ एक बहाना चाहिए जीने का ,
आशा हे आप मुझे समझेंगे , अन्यथा नहीं लेंगे ,
हां विश्वास रखिए , जो लिखूंगा दिल से लोखूँगा .
आपका मार्गदर्शन मिलता रहेगा ,
इसी विश्वास के साथ ,
सादर ,
अशोक अश्क
आदरणीय अशोक भाई जी,
पहला निवेदन कि आप मेरी टिप्पणी को अन्यथा न लें। मैं भी एक साधारण ही व्यक्ति हूं। मन के भावों को व्यक्त करने का तरीका ही कविता है।
मेरा निवेदन सिर्फ इतना है कि आप इस मंच पर हैं जहां सबको कुछ न कुछ या कहें कि बहुत कुछ सीखने को मिला है। आप भी सीखें। यहां गज़ल की कक्षा में लेखमाला मौजूद है जो पूरी जानकारी प्रदान करती है। उसका लाभ उठाएं। निश्चित मानिए आपके मन को और अच्छा लगेगा जब नियमों के अधीन लेखन करेंगे। मैं भी अभी सीख ही रहा हूं। जो मेरे पिछले एक महीने के यहां के अनुभव हैं वही आपके साथ साझा कर रहा हूं। यहां आने से पहले मैं भी ऐसे ही लिखता था लेकिन अब और अच्छा लगने लगा है मेरे मन को जबसे नियमों के तहत लिखने का प्रयास करने लगा हूं।
हम सब आपके साथ हैं। टिप्पणी को सकारात्मक रूप से लें। मेरा मन्तव्य आपको कमी की तरफ इशारा करना था इस इच्छा के साथ कि आप तदनुसार सुधार का प्रयास करें।
मैं नहीं चाहता कि भविष्य का एक महान रचनाकार यूं ही अंधेरे में गुम हो जाए।
इस उम्मीद के साथ आप मुझसे और ओ बी ओ से अपना स्नेह बनाए रखेंगे।
सादर!
खरीद सकते अगर आपको तो खरीद लेते ,
अपनी ज़िंदगी बेच कर ,
लेकिन ,
कुछ चीज़ें कीमत से नहीं ,
किस्मत से मिलती हें ,
अशोक अश्क
माननीय ,
मे एक साधारण व्यक्ति हूँ , मंजा हुआ कवि नहीं , ना ही मे इस लायक हूँ ,
मन के भाव और कुछ शब्द जब मिल जाते हें , तो एक कविता का जन्म होता हे ,
जो मेरे मान को शांति प्रदान करता है , ये मेरे जीने का हिस्सा हे . कृपया इसे ऐसे ही लें ,
आप सबका प्यार और आशीर्वाद मिलेगा तो जीवन सरल हो जाएगा , इस मंच के माध्यम से
में सिर्फ़ अपनी भावनाएँ अभिवक्त करना चाहता हूँ . आशा करता हूँ आपका आशीर्वाद और साथ
हमेशा मेरे साथ रहेगा .
सादर ,
आपका ,
अशोक अश्क
माननीय ,
मे एक साधारण व्यक्ति हूँ , मंजा हुआ कवि नहीं , ना ही मे इस लायक हूँ ,
मन के भाव और कुछ शब्द जब मिल जाते हें , तो एक कविता का जन्म होता हे ,
जो मेरे मान को शांति प्रदान करता है , ये मेरे जीने का हिस्सा हे . कृपया इसे ऐसे ही लें ,
आप सबका प्यार और आशीर्वाद मिलेगा तो जीवन सरल हो जाएगा , इस मंच के माध्यम से
में सिर्फ़ अपनी भावनाएँ अभिवक्त करना चाहता हूँ . आशा करता हूँ आपका आशीर्वाद और साथ
हमेशा मेरे साथ रहेगा .
सादर ,
आपका ,
अशोक अश्क
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जिधर भी देखा दर्द ही दर्द मिले,
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अपने साए से हुए , चेहरे सर्द मिले,
मुझे लगता है कि यह गज़ल बहर में तो है नहीं।
आपने कमाल कर दिया अशोक जी. बहुत सुंदर .
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