ठगती है,
बार बार,
अंतरात्मा,
आश्वासनों से,
ठीक हो जाएगा,
सब ठीक हो जाएगा,
एक अंतर्द्वंद्व,
सत्य असत्य,
दिल दिमाग़ के मध्य,
नही डिगेगा,
कभी नही डिगेगा,
चलते जाना है,
सत्य के मार्ग पर,
जो घटित होना है,
हो जाय,
कौन अमर यहाँ,
कोई नही,
कोई भी तो नही,
फिर डर कैसा,
उस अहंकार से,
जो क्षण भंगुर है,
चल हट !
चलने दे,
कार्य पथ पर बढ़ने दे,
वो सामने देख
डर के आगे,
जीत है |
(मौलिक व अप्रकाशित)
पिछला पोस्ट => लघुकथा : ईलाज / गणेश जी बागी
Comment
आदरणीय कुशवाहा जी, आपका आशीर्वाद मिला और क्या चाहिए, आपका आभार |
प्रिय केवल प्रसाद जी, रचना अच्छी लगी, लेखन कर्म सार्थक हुआ, आभार आपका |
प्रिय संदीप भाई सराहना हेतु हृदय से आभार |
आदरणीय गणेशजी बागी जी,
बहुत ही सुन्दर रचना ,
जब थाप पड़े , जब तान खिंचे , गूँजे मधुर संगीत हे ,
मत हार मुसाफिर , जाग ज़रा , डर के आगेजीत हे ;
बधाई स्वीकारें।
सादर,
वास्तव में डर के आगे जीत है इसलिए निरंतर अग्रसर ही रहना है। गुरूवर बधाई आपको।
कुछ टाइपिंग की गलतियां हैं सर उन्हें सुधार लीजिए। आशा है आप अन्यथा न लेंगे।
सादर!
जी हाँ
दर के आगे जीत ही तो है.
भय समाप्त हो जाये तो व्यक्ति अजेय ही है
बधाई आदरणीय बाग़ी सर जी
सादर अभिवादन के साथ
आदरणीय गणेशजी बागी जी, ’कार्य पथ पर बढ़ने दे,
वो सामने देख
डर के आगे,
जीत है।’ अतिसुन्दर रचना। बधाई स्वीकारें। सादर,
आदरणीय गणेश बागी सर जी सादर प्रणाम
बहुत ही सुन्दर बात कही है आपने
डर के आगे जीत है
सुन्दर रचना हेतु बधाई
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