For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हमने हर मौसम को आते जाते देखा है

हमने हर मौसम को आते जाते देखा है
हमको लेकिन सबने बस मुस्काते देखा है

झूठी बातें झूठे किस्से बतलाते हैं लोग
पत्थर को कब दर्पण से शरमाते देखा है

पर्दा रखना ठीक लगा हमको दुनिया में अब
फूलों पर जब भँवरों को मंडराते देखा है

कछुआ और खरगोश पुरानी बातें हैं यारो
अब गदहों को हमने मंजिल पाते देखा है

मंदिर मंदिर मिन्नत करके जिसको पाया था
उसको ही कल हमने आँख दिखाते देखा है

गाली देते फिरता था जो गुंडा राहों में
उसको ही अब अपना देश चलाते देखा है

घिस घिस खुदको कुंदन सा कर डाला है जिसने
उसकी चप्पल को हमने घिस जाते देखा है

कितने प्यासे आते हैं उसके साहिल पे पर
सागर को क्या उनकी प्यास बुझाते देखा है

इतराए थे तुम चढ़ के जो पहली सीढ़ी यूँ
उसके बाद ही तुमको लौट के आते देखा है

बाप बने हो जबसे चिंता में डूबे हो क्यूँ
तुमने किसकी अस्मत को लुट जाते देखा है ???

तुमने पन्नी फेंकी उसने बीन लिया उसको
बचपन से जिसको बस सपने खाते देखा है

उनको भरमाओ लेकिन बस इतना बतला दो
हमको कब सूरज को दीप दिखाते देखा है

संदीप पटेल “दीप”

Views: 627

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 15, 2013 at 10:15pm

गाली देते फिरता था जो गुंडा राहों में
उसको ही अब अपना देश चलाते देखा है.............वाह! क्या बात कही है.

बहुत सुन्दर गजल आदरणीय भाई संदीप जी.

Comment by vijay nikore on April 15, 2013 at 9:34pm

संदीप जी,

 

आपकी गज़ल पढ़ कर आनन्द आया। बहुत खूब!

बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 15, 2013 at 8:22pm

बहुत शानदार गज़ल कही है प्रिय संदीप जी 

हर एक शेर लाजवाब है ...  कौन से शेर बेहद पसंद आये कहना मुश्किल है, सभी बहुत अच्छे लगे 

कितने प्यासे आते हैं उसके साहिल पे पर
सागर को क्या उनकी प्यास बुझाते देखा है.....बहुत खूब!!

बाप बने हो जबसे चिंता में डूबे हो क्यूँ
तुमने किसकी अस्मत को लुट जाते देखा है ???..... उफ्फ!! बेटी के पिता की चिंता पर क्या शब्द लिखे हैं ..

हार्दिक दाद क़ुबूल कीजिये इस शानदार गज़ल पर.

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 15, 2013 at 5:42pm
फूलों से पर्दा उठा जालिम चमन वाले।
मैंने खुद तुझे तितली के पीछे आते देखा है॥
Comment by ram shiromani pathak on April 15, 2013 at 3:20pm

बाप बने हो जबसे चिंता में डूबे हो क्यूँ
तुमने किसकी अस्मत को लुट जाते देखा है ???///////सुन्दर

गाली देते फिरता था जो गुंडा राहों में
उसको ही अब अपना देश चलाते देखा है////ये लगा चौका 

बहुत सुन्दर आदरणीय पटेल जी  हार्दिक बधाई /////////

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 15, 2013 at 1:46pm

आदरणीय विनय भाई सादर
आपकी इस तरह सराहना पाकर मन प्रफुल्लित हो गया
इस हौसलाफजाई के लिए आपका बहुत बहुत आभार
स्नेह यूँ ही बनाए रखिए

आपके कहे को आगे बढ़ाता हूँ
नैसर्गिक प्रेम एक के साथ हो या जो दिख जाए सभी के साथ
मुझे फूल और भंवरे के प्रेम से आपत्ति नही है
मुझे भीड़ से आपत्ति है जो एक फूल पे ही मंडराते हैं यहाँ नैसर्गिक प्रेम की बात ही नही है

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 15, 2013 at 7:56am
भाई संदीप जी! बहुत ही शानदार गजल कही है आपने।कभी- कभी तो आपकी अभिव्यक्ति क्षमता से मुझे सौतिया डाह होने लगती है तो कभी इतना आनन्द आता है कि मन-चित्रलिखित सा रहा जाता है,शब्द ही नि:शेष हो जाते हैं।आपके ये शेर मुझे बेहद पसंद आये-
//झूठी बातें झूठे किस्से बतलाते हैं लोग
पत्थर को कब दर्पण से शरमाते देखा है//

सच पत्थर हृदय व्यक्ति कभी लज्जित हो ही नहीं सकता,क्योंकि उसने बेशर्मी का सख्त लबादा ओढ़ लिया है।

//पर्दा रखना ठीक लगा हमको दुनिया में अब
फूलों पर जब भँवरों को मंडराते देखा है//

नहीं भाई ये जुल्म नहीं,फूल और भौंरे का नैसर्गिक साहचर्य है।आपके इन पंक्तियों से असहमति में मेरी ये पंक्तियां-

"फूलों से पर्दा हटा जालिम चमन वाले।
मैंने खुद तितली के पीछे आते देखा है॥"

फिर भी मुरीद हूँ इसके नवापन पर।

//कछुआ और खरगोश पुरानी बातें हैं यारो
अब गदहों को हमने मंजिल पाते देखा है//

इसे क्या माना जाये तंत्र की बिडम्बना या उनकी लगन कुछ कन्फ्यूज सा हूँ।फिर भी बेहद पसंद आया।

//मंदिर मंदिर मिन्नत करके जिसको पाया था
उसको ही कल हमने आँख दिखाते देखा है//

मैं भी दो- चार होता हूँ इस समस्या से,शायद ये वैश्विक समस्या है।

//बाप बने हो जबसे चिंता में डूबे हो क्यूँ
तुमने किसकी अस्मत को लुट जाते देखा है ???//
कितना गम्भीर प्रश्न किया है आपने एक बेटी का बाप होना कितना चिंताजनक है।पहले केवल दहेज की चिंता सताया करती थी अब यह एक और चिंता उभर कर सामने आ गयी।अभी आज की खबर की दिल्ली में ही एक चार्टेड बस में 10 साल की लड़की से फिर रेप हुआ। क्या कहा जाये इस मौन मोहन व शीला को।
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 14, 2013 at 9:31pm

आदरणीय लक्षमण सर जी सादर प्रणाम 

आपकी बधाई ह्रदय से स्वीकार करता हूँ 

सादर आभार आपका 

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 14, 2013 at 9:30pm

आदरणीया कल्पना जी सादर 

सराहना हेतु बहुत बहुत शुक्रिया आपका 

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 14, 2013 at 9:29pm

आदरणीय प्रदीप सर जी सादर प्रणाम 

ग़ज़ल को मान दे हौसलाफजाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया आपका 

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।सुंदर और समसामयिक लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
4 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। प्रदत्त विषय को एक दिलचस्प आयाम देते हुए इस उम्दा कथानक और रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया…"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदरणीय शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। शीर्षक लिखना भूल गया जिसके लिए…"
5 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"समय _____ "बिना हाथ पाँव धोये अन्दर मत आना। पानी साबुन सब रखा है बाहर और फिर नहा…"
7 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक स्वागत मुहतरम जनाब दयाराम मेठानी साहिब। विषयांतर्गत बढ़िया उम्दा और भावपूर्ण प्रेरक रचना।…"
11 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
" जय/पराजय कालेज के वार्षिकोत्सव के अवसर पर अनेक खेलकूद प्रतियोगिताओं एवं साहित्यिक…"
11 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हाइमन कमीशन (लघुकथा) : रात का समय था। हर रोज़ की तरह प्रतिज्ञा अपने कमरे की एक दीवार के…"
12 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। हार्दिक स्वागत आदरणीय विभारानी श्रीवास्तव जी। विषयांतर्गत बढ़िया समसामयिक रचना।"
13 hours ago
vibha rani shrivastava replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
""ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123विषय : जय/पराजय आषाढ़ का एक दिन “बुधौल लाने के…"
18 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। हार्दिक स्वागत आपकी रचना का। प्रदत्त विषयांतर्गत बेहद भावपूर्ण और विचारोत्तेजक कथानक व कथ्य…"
20 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सादर प्रणाम, आदरणीय ।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service