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गाली देते फिरता था जो गुंडा राहों में
उसको ही अब अपना देश चलाते देखा है.............वाह! क्या बात कही है.
बहुत सुन्दर गजल आदरणीय भाई संदीप जी.
संदीप जी,
आपकी गज़ल पढ़ कर आनन्द आया। बहुत खूब!
बधाई।
सादर,
विजय निकोर
बहुत शानदार गज़ल कही है प्रिय संदीप जी
हर एक शेर लाजवाब है ... कौन से शेर बेहद पसंद आये कहना मुश्किल है, सभी बहुत अच्छे लगे
कितने प्यासे आते हैं उसके साहिल पे पर
सागर को क्या उनकी प्यास बुझाते देखा है.....बहुत खूब!!
बाप बने हो जबसे चिंता में डूबे हो क्यूँ
तुमने किसकी अस्मत को लुट जाते देखा है ???..... उफ्फ!! बेटी के पिता की चिंता पर क्या शब्द लिखे हैं ..
हार्दिक दाद क़ुबूल कीजिये इस शानदार गज़ल पर.
बाप बने हो जबसे चिंता में डूबे हो क्यूँ
तुमने किसकी अस्मत को लुट जाते देखा है ???///////सुन्दर
गाली देते फिरता था जो गुंडा राहों में
उसको ही अब अपना देश चलाते देखा है////ये लगा चौका
बहुत सुन्दर आदरणीय पटेल जी हार्दिक बधाई /////////
आदरणीय विनय भाई सादर
आपकी इस तरह सराहना पाकर मन प्रफुल्लित हो गया
इस हौसलाफजाई के लिए आपका बहुत बहुत आभार
स्नेह यूँ ही बनाए रखिए
आपके कहे को आगे बढ़ाता हूँ
नैसर्गिक प्रेम एक के साथ हो या जो दिख जाए सभी के साथ
मुझे फूल और भंवरे के प्रेम से आपत्ति नही है
मुझे भीड़ से आपत्ति है जो एक फूल पे ही मंडराते हैं यहाँ नैसर्गिक प्रेम की बात ही नही है
आदरणीय लक्षमण सर जी सादर प्रणाम
आपकी बधाई ह्रदय से स्वीकार करता हूँ
सादर आभार आपका
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
आदरणीया कल्पना जी सादर
सराहना हेतु बहुत बहुत शुक्रिया आपका
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
आदरणीय प्रदीप सर जी सादर प्रणाम
ग़ज़ल को मान दे हौसलाफजाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया आपका
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
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