हिन्दी गजल...
गर्मियों की शान है, ठंडी हवा हर पेड़ की।
धूप में वरदान है, ठंडी हवा हर पेड़ की।
हर पथिक हारा थका, पाता यहाँ विश्राम है,
भेद से अंजान है, ठंडी हवा हर पेड़ की।
नीम, पीपल, हो या वट, रखते हरा संसार को,
मोहिनी, मृदु-गान है, ठंडी हवा हर पेड़ की।
हाँफते विहगों की प्यारी, नीड़ इनकी डालियाँ,
और इनकी जान है, ठंडी हवा हर पेड़ की।
रुख बदलती है मगर, रूठे नहीं मुख मोड़कर,
सृष्टि का अनुदान है, ठंडी हवा हर पेड़ की।
जो न साधन जोड़ पाते, वे शरण पाते यहाँ,
दीन का भगवान है, ठंडी हवा हर पेड़ की।
हे मनुष मिटने न दो, जीवन के अनुपम स्रोत को,
गूढ यह विज्ञान है, ठंडी हवा हर पेड़ की।
मौलिक एवं अप्रकाशित
----कल्पना रामानी
Comment
राम शिरोमणि जी, मेरी पूरी कोशिश रहेगी कि सक्रिय बनी रहूँ, छंद विधा में लिखना मेरा प्रिय शौक है, मेरी पुरानी रचनाएँ मेरे ब्लॉग पर पढ़ सकते हैं। मेरे इसी नाम से आपको गूगल पर लिंक मिल जाएगी।
आ॰ मित्रों, ब्रजेश जी, वंदना जी, गीतिका जी, राम शिरो मणि जी, रचना को अपना स्नेह प्रदान करने के लिए हार्दिक आभार....
सही ...शानदार ....मुकम्मल गज़ल पर शुभकामनायें स्वीकारिये आदरेया कल्पना जी!
आदरेया कल्पना जी,अति सुन्दर!///हार्दिक बधाई//आशा करता हूँ आपको निरंतर पढ़ने को मिलेगा //
आदरेया कल्पना जी इस सुन्दर रचना पर मेरी बधाई स्वीकार करें।
योगी सारस्वत जी, लक्ष्मण प्रसाद जी, प्राची जी, अशोक कुमार जी एवं कुंती जी, आप सबकी सस्नेह सुंदर टिप्पणियों से बहुत प्रोत्साहन मिला है, सभी नाम मेरे लिए नए हैं, कुछ गलत लिख दिया हो तो अवश्य अवगत कराएं। आप सबका हार्दिक धन्यवाद।
राजेश जी, यहाँ की कक्षा में आकार सीखते सीखते ही इस परिवार से जुड़ गई हूँ। अभी बहुत सीखना है। यहाँ बहुत अच्छा लगा।
रचना की प्रशंसा करने के लिए आपका हार्दिक आभार
कल्पना दी, आपको यहां देखकर बहुत प्रसन्नता हुई, आपकी हर रचना खूबसूरत होती है एवं यह भी इसका अपवाद नहीं, सादर
नीम, पीपल, हो या वट, रखते हरा संसार को,
भूमि पर वरदान है, ठंडी हवा हर पेड़ की।
हाँफते विहगों की प्यारी, नीड़ इनकी डालियाँ,
और इनकी जान है, ठंडी हवा हर पेड़ की।
रुख बदलती है मगर, रूठे नहीं मुख मोड़कर,
सृष्टि का अनुदान है, ठंडी हवा हर पेड़ की।
जो न साधन जोड़ पाते, वे शरण पाते यहाँ,
दीन का भगवान है, ठंडी हवा हर पेड़ की।
एक एक अलफ़ाज़ , एक एक शे'र सुन्दर !
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