For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

छांव निगलकर हँसता सूरज

नवगीत

 

छाँव निगलकर हँसता सूरज,

उगल रहा है धूप।

 

शीतलता को रखा कैद में,

गर्मी लाया साथ।

तप्त दुपहरी रानी बनकर,

बाँट रही सौगात।

फ्रूट-चाट, कुल्फी, ठंडाई,

सभी सुहाने रूप।

 

रातें छोटी दिन हैं लंबे,

लू का बढ़ा प्रकोप।

घने पेड़ भी तपे आग से,

शीत हवा का लोप।

चीं चीं, चूँ चूँ, कांव कांव सब,

ढूंढ रहे नल कूप।

 

सड़क किनारे ठेले वाले,

राहत लिए खड़े।

जन-जन के तर कंठ कर रहे,

जल से भरे घड़े।

दही,शिकंजी,जूस देखकर,

भाग छिपा है सूप।

 

तपी हुई राहें पथिकों के,

झुलसाती जब पाँव।

सुख-पड़ाव बन जाती है तब,

गुलमोहर की छाँव।

गुल-गुच्छों के छत्र तले सब।

बने हुए हैं भूप।

 

मौलिक एवं अप्रकाशित

 

----कल्पना रामानी

Views: 567

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कल्पना रामानी on April 16, 2013 at 6:01pm

राजेश जी, जवाहर लाल जी, अशोक कुमार जी, आप सबका प्रोत्साहित करने के लिए हृदय से आभार...

Comment by राजेश 'मृदु' on April 16, 2013 at 5:45pm

आदरणीय कल्‍पना दी, बड़े दिनों के बाद आपका नवगीत पढ़ने को मिला । बहुत ही सुंदर लेखन हमेशा की तरह, सादर

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 16, 2013 at 5:45am

सड़क किनारे ठेले वाले,

राहत लिए खड़े।

जन-जन के तर कंठ कर रहे,

जल से भरे घड़े।

दही,शिकंजी,जूस देखकर,

भाग छिपा है सूप।

इनके अलावा भी अन्य पंक्तियां भी ख़ूबसूरत है! बधाई! 

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 15, 2013 at 10:22pm

आदरणीया कल्पना रामानी जी सादर, बहुत सुन्दर समयानुकूल नवगीत. बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.

Comment by कल्पना रामानी on April 15, 2013 at 10:08pm

प्राची जी, विन्ध्येश्वरी जी,आ॰ विनय जी, केवल प्रसाद जी, आप उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार। अपना स्नेह बनाए रखिए...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 15, 2013 at 8:27pm

ग्रीष्म ऋतु के आगमन की दस्तक पर बहुत सुन्दर नवगीत लिखा है आदरणीय कल्पना जी.. बहुत सुन्दर, वाह 

चीं चीं, चूँ चूँ, कांव कांव सब,

ढूंढ रहे नल कूप।......................बिल्कुल जीवंत शब्द चित्र 

हार्दिक बधाई स्वीकार करें 

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 15, 2013 at 7:30am
आदरणीया कल्पना रमानी जी! सुन्दर अभिव्यक्ति।आपने जिस खूबसूरती के साथ नवीन बिम्बों को पिरोया है, उसके लिये भूरिश: बधाई!
Comment by vijay nikore on April 15, 2013 at 2:50am

कल्पना जी:

//छाँव निगलकर हँसता सूरज,

उगल रहा है धूप।//

सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बधाई।

सादर,

विजय निकोर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 14, 2013 at 9:35pm

आ0 कल्पना रामानी जी,
’गुलमोहर की छाँव।
गुल.गुच्छों के छत्र तले सब।
बने हुए हैं भूप।’ अतिसुन्दर, हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर,

Comment by shalini kaushik on April 14, 2013 at 8:42pm
भावात्मक अभिव्यक्ति ह्रदय को छू गयी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी छंद ++++++++++++++++++   उसे ही कुंभ आना है, पुन्य जिसको पाना है,…"
3 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी छंद ++++++++++++++++++   उसे ही कुंभ आना है, पुन्य जिसको पाना है, पहुँचे लाखों…"
3 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . जीत - हार

दोहा सप्तक. . . जीत -हार माना जीवन को नहीं, अच्छी लगती हार । संग जीत के हार से, जीवन का शृंगार…See More
22 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में आपका हार्दिक स्वागत है "
22 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- झूठ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी उपस्थिति और प्रशंसा से लेखन सफल हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . पतंग
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय "
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने एवं सुझाव का का दिल से आभार आदरणीय जी । "
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . जीत - हार
"आदरणीय सौरभ जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया एवं अमूल्य सुझावों का दिल से आभार आदरणीय जी ।…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गीत रचा है। हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। सुंदर गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।भाई अशोक जी की बात से सहमत हूँ। सादर "
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service