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 मत तोड़ फूल को शाख से

झूमते झूलते संग हवा के

हिलोरें ले रही शाखाओं पर 

सज रहें ये खिले खिले पेड़

बहने दो संगीतमय लहर

यही तो गीत है जीवन का 

....................................

 रहने दो फूल को शाख पर 

वहीँ खिलने और झड़ने दो 

बिखरने दो इसे यूं ही यहाँ 

आकुल है भूमि चूमने इसे 

महकने दो आँचल धरा का 

सृजन होगा नवगीत यहाँ 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by Rekha Joshi on April 23, 2013 at 9:16pm

उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार राम जी ,धन्यवाद 

Comment by ram shiromani pathak on April 23, 2013 at 9:04pm

 बहुत  सुन्दर, हार्दिक बधाई

Comment by Rekha Joshi on April 23, 2013 at 8:38pm

आभार गीतिका जी 

Comment by वेदिका on April 23, 2013 at 8:14pm

नवगीत के व्याकरण और शिल्प के बारे में मुझे कोई ज्ञान तो नहीं है .....भाव बखूबी उकेरे आपने आदरणीया रेखा जी!

Comment by Rekha Joshi on April 23, 2013 at 7:27pm

आदरणीय अशोक जी ,सादर आपको दोनों पद समान लगे परन्तु शायद दोनों के बीच में अंतर पर आप ने ठीक से ध्यान नही दिया पहले पद में प्रकृति में चल रहा गीत और संगीत है तथा दूसरे में फूलो का झड़ना और बीज से सृजन और उससे उपजने वाला नवगीत है क्योंकि हर पल नया है ,ख़ैर आपको रचना के भाव पसंद आये ,हार्दिक आभार 

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 23, 2013 at 7:08pm

आदरणीय रेखा जी सादर, मुझे यह रचना नवगीत तो नहीं लगती.बहुत सुन्दर भाव प्रस्तुत किये हैं किन्तु क्षमा करें  रचना के दोनों ही पदों में समानता होने से मुझे लगता है दो पद लिखने का श्रम नाहक था. सामयिक घटना से मन में उपजे भावों की अच्छी प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by Rekha Joshi on April 23, 2013 at 6:31pm

आ श्याम जी ,आ विजय जी ,आपका हार्दिक आभार ,सुझाव के लिए धन्यवाद आ विजय जी ,तहे दिल से शुक्रिया 

Comment by Rekha Joshi on April 23, 2013 at 6:29pm

आदरणीया डा प्राची जी ,रचना को पसंद करने पर हार्दिक धन्यवाद ,रचना लिखते हुए सृजन का भाव मन में आया ,हर पल जिंदगी में बदलाव हो रहा है ,हर पल नया है ,धरा से बीज जब फुटाव लेता है नई छोटी छोटी  कोमल पत्तिया निकलती है प्रकृति से नवगीत का सृजन ही इस रचना का भाव है ,ऐसे ही प्रेरणा देते रहिये ,आभार 

Comment by Rekha Joshi on April 23, 2013 at 6:17pm

आ मनु जी ,आ वंदना जी आ कुंती जी ,आप का दिल से आभार ,ऐसे ही उत्साह बढाते रहिये ,धन्यवाद 

Comment by vijay nikore on April 23, 2013 at 4:25pm

आदरणीया रेखा जी:

भाव अच्छे लगे.... बधाई.. ।

पढ़ते हुए लय में बाधा हुई। एक विनम्र सुझाव ... शब्दों का प्रपठन करने से रचना और पठनीय बन सकती है।


सादर,

विजय निकोर

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