भर्त्सना के भाव भर, कितनी भला कटुता लिखें?
नर पिशाचों के लिए, हो काल वो रचना लिखें।
नारियों का मान मर्दन, कर रहे जो का-पुरुष,
न्याय पृष्ठों पर उन्हें, ज़िंदा नहीं मुर्दा लिखें।
रौंदते मासूमियत, लक़दक़ मुखौटे ओढ़कर,
अक्स हर दीवार पर, कालिख पुता उनका लिखें।
पशु कहें, किन्नर कहें, या दुष्ट दानव घृष्टतम,
फर्क उनको क्या भला, जो नाम, जो ओहदा लिखें।
पापियों के बोझ से, फटती नहीं अब ये धरा
खोद कब्रें, कर दफन, कोरा कफन टुकड़ा लिखें।
हों बहिष्कृत परिजनों से, और धिक्कृत हर गली,
डूब जिसमें खुद मरें वो, शर्म का दरिया लिखें।
कब तलक घिसते रहेंगे, रक्त भरकर लेखनी,
हों न वर्धित वंश, उनके नाश को न्यौता लिखें।
मौलिक व अप्रकाशित
कल्पना रामानी
Comment
आदरणीय, अशोक कुमार जी, रचना को अपना स्नेह प्रदान करने के लिए हार्दिक आभार....
waah bahut khoon kalpana di sundar gajal ke liye hardik badhai
कब तलक घिसते रहेंगे, रक्त भरकर लेखनी,
हों न वर्धित वंश, उनके नाश को न्यौता लिखें।.........बहुत बढ़िया.
आदरणीया कल्पना रामानी जी सादर, सुन्दर परिस्थिति अनुकूल गजल के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.
वर्तमान परिस्थितियों का अत्यंत सटीक वर्णन .............परिवर्तन के लिए आन्दोलित करती रचना .........बधाई हो कल्पना जी।
अद0 रामानी जी, अति सुन्दर, इन शब्द, भाव, लेखनी को नमन्! बधाई स्वीकारें। सादर,
राजेश जी, रचना की सराहना के लिए हृदय से धन्यवाद....
आदरणीय बृजेश कुमार जी, बहुत बहुत धन्यवाद आपका....
आदरणीय प्रदीप कुमार जी, रचना की सराहना हेतु हार्दिक आभार...
रक्त को उबालती रचना हेतु
सादर बधाई.
आदरणीया रामानी जी
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