32 वर्णो का डमरू दण्डक ‘‘ल सब‘‘ अर्थात इसके बत्तीसों वर्ण लघु होते है।
‘‘कमल नमन कर तमस शमन कर, उजस उरन भर हरष सकल नर।
अपजस हर मन सब रस तन भर, कलश सगर सम हृदय तरल कर।।
हलधर मत कह जन मन भय डर, भग कर लठ लय तड़ तड़ तब मर।
हलधर जय जय भगवन छत धर, मन भय हर-हर भजन करत तर।।‘‘
भावार्थ- कमल आदित्य के समान ही समस्त तिमिर को नष्ट करने वाला, हृदयों मे उल्लास, ओज और सभी प्राणियों में हर्ष का संचार करके दुःखों और सारी विकृतियों को दूर करने वाला है। यह शुभ कलश और विपुल पयोधि की भांति ही अन्तर्मन को द्रवित करके ईशमय सारे सद्गुणों की उत्पत्ति करता है। सामान्यतया सर्प को सर्प ही कहने से रोका गया है। अतः इसे कीड़ा अथवा गोजर आदि शब्द से सम्बोधन किया जाता है और इसे कालरूप में देख कर मनुष्य भय करके तत्काल इसका मुख कुचल कर मार देता है। सर्प को सर्प इसलिए भी नही कहते है क्योकि हलधर तो शेषनाग अर्थात श्रीराम के अनुज श्री लक्ष्मणजी ही हैं। जो सदैव ही परमेश्वर की आराम शैया और सिर छत्र बनकर उनकी सेवा में लगे रहते है। इनका स्मरण करते ही सकल जीव भय से मुक्त हो जाता है तथा भगवान विष्णु जी सहित शेषनाग जी का भजन आरती गाने से जीव को परम गति अर्थात मोक्ष की प्राप्ति होती है।
के0पी0सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित
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आ0 रामशिरोमणि भाई जी, आपके स्नेह और सराहना से मैं धन्य हुआ। तहेदिल से हार्दिक आभार। सादर,
आ0 अरून अनन्त भाई जी, आपके मुग्धकारी स्नेह हेतु आपका बहुत बहुत धन्यवाद एवं हार्दिक आभार। सादर,
आ0 गीतिका वेदिका जी, आपके स्नेह के लिए बहुत बहुत धन्यवाद एवं हार्दिक आभार। सादर,
आ0 लड़ीवाला जी, आपके स्नेह पूरित आशीष के लिए बहुत बहुत हार्दिक आभार। सादर,
बहुत ही सुन्दर प्रयास है भाई केवल प्रसाद जी, आपका यह प्रयास मुग्ध कर रहा है हार्दिक बधाई स्वीकारें
बहुत सुंदर प्रयास आदरणीय केवल प्रसाद जी
सुन्दर डमरू घनाक्षरी के लिए बधाई भाई श्री केवल प्रसाद जी
आ0 मनोज भाई जी, आपका धन्यवाद सहित हार्दिक आभार। सादर,
आ0 रक्ताले जी, आपका स्नेह सदैव आशीष फलता है। सर जी, आपने उचित कहा। धन्यवाद सहित हार्दिक आभार। सादर,
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