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मुक्तिका: जीवन की जय गायें हम.. संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

जीवन की जय गायें हम..

संजीव 'सलिल'.
*
जीवन की जय गायें हम..
सुख-दुःख मिल सह जाएँ हम..
*
नेह नर्मदा में प्रति पल-
लहर-लहर लहरायें हम..
*
बाधा-संकट -अड़चन से
जूझ-जीत मुस्कायें हम..
*
गिरने से क्यों डरें?, गिरें.
उठ-बढ़ मंजिल पायें हम..
*
जब जो जैसा उचित लगे.
अपने स्वर में गायें हम..
*
चुपड़ी चाह न औरों की
अपनी रूखी खायें हम..
*
दुःख-पीड़ा को मौन सहें.
सुख बाँटें हर्षायें हम..
*
तम को पी, बन दीप जलें.
दीपावली मनायें हम..
*
लगन-परिश्रम-कोशिश की
जय-जयकार गुंजायें हम..
*
पीड़ित के आँसू पोछें
हिम्मत दे, बहलायें हम..
*
अमिय बाँट, विष कंठ धरें.
नीलकंठ बन जायें हम..

*****

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Comment

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Comment by sanjiv verma 'salil' on December 23, 2010 at 3:17pm
aap sabka abhar.
Comment by Bhasker Agrawal on December 8, 2010 at 3:40pm
जब जो जैसा उचित लगे.
अपने स्वर में गायें हम...man moh liye in lines ne

जब जो जैसा उचित लगे.
अपने स्वर में गायें हम..aaha ha
Comment by Abhinav Arun on November 30, 2010 at 3:58pm
अत्यंत मधुर साहित्यिक रेखांकन | मन शब्द चित्रों में खो सा जाता है | वाह वाह !!!
Comment by sanjiv verma 'salil' on November 25, 2010 at 6:10pm
dhanyavad.

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 25, 2010 at 11:00am
बेहतरीन !

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