शत शत प्रणाम
जो सुबह देखता हु,
शाम को लिखता हु,
रात मे इत्मिनान करता हु,
परिपक्व नजरो को,
जागरूक विचारो को,
मेह्नत और लगन को,
शत शत प्रणाम करता हु.
यतीन्द्र जनता है,
राह कठिन है,
पर वो अविचल है,
उठने वाली कर्कस आवाज का,
सरोकार करता हूँ,
नयी सोच और विस्वाश,
परिवर्तन के मार्ग को,
शत शत प्रणाम करता हूँ.
यतीन्द्र अब अज्ञानी नहीं,
जिन्दगी उसकी बेमानी नहीं,
सत्य की पूजा और प्रकृति से,
प्यार करता हूँ,
अतुल्यनीय जज्बातों को,
ज्वलंत किस्सों को,
शत शत प्रणाम करता हूँ.
शत शत प्रणाम करता हूँ.
यतीन्द्र पाण्डेय
Comment
जो सुबह देखता हु,
शाम को लिखता हु,
रात मे इत्मिनान करता हु,
परिपक्व नजरो को,
जागरूक विचारो को,
मेह्नत और लगन को,
शत शत प्रणाम करता हु.
आदरणीय यतीन्द्र जी, सादर!
मैं भी तो वही शुबह शाम करता हूँ! बहुत सुंदर!
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