"ग़ज़ल "
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कलम का वार कैसा है कोई उनको बताये तो !
सियासत हाथ मलती है कोई दिल से चलाये तो !!
हमारे देश में अब राज चलता है लुटेरों का !
हमें भी साँस मिल जाये कोई इनको हटाये तो !!
किसी नादाँ के ऊपर देश का तुम भार मत ढालो !
बता दो देश से पहले वोह अपना घर चलाये तो !!
हमेशां जिंदगी से जूझता है आम हर बन्दा !
कभी वोह चैन से सोये , कभी इतना कमाये तो !!
हमारी साँस पे भी वोह तो अपना हक्क जमाता है !
कभी साँसों पे अपनी भी हमारा हक्क बताये तो !!
हमें बच्चे बताते है हमारे घाव गहरे हैं !
यह हमने किस लिये खाये ,कोई इनको बताये तो !!
मुहब्बत सब को मिल जाये ,यकीनी यह जरूरी ना !
जमीं को छाँव मिलती है , बिरख पर धुप आये तो !!
हिमाकत कर ही डाली है ग़ज़ल कह कर जो अब 'लाली'!
मैं माफ़ी माँग लेता हूँ कहीं गलती जो आये तो !!
"लाली"
[ मौलिक और अप्रकाशित रचना.]
Comment
वाह वाह क्या बात है सुंदर ग़ज़ल हुई है दिली दाद हाजिर हैं
हमारे देश में अब राज चलता है लुटेरों का !
हमें भी साँस मिल जाये कोई इनको हटाये तो !!
किसी नादाँ के ऊपर देश का तुम भार मत ढालो !
बता दो देश से पहले वोह अपना घर चलाये तो !!///बहुत ही सुन्दर
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