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सागर में सागर की खोज [गीत ]

समन्दर में बसी मछली, समन्दर ढूढ़ती है क्यों ।
जो उसके हर तरफ फैला, उसे ना देखती है क्यों ।

वो सागर से पूछती है, बता तेरा पता है क्या ।
बताये कैसे ये सागर, बताने को भला है क्या ।

जहाँ पर वो वही सागर ,नही ये सोचती है क्यों ।

समन्दर में बसी मछली............................|

ना जाने कौन सा सागर, लिए बैठी ख़यालों में ।

वो लहरों में भटकती है, फसा करती है जालों में ।

वो पल पल जी रही जिसमे, उसी को भूलती है क्यों ।

समन्दर में बसी मछली................................ |

खुदा को खोजने वालों, अपनी भटकन जरा समझो ।
खोज सागर में सागर की, की ये पागलपन जरा समझो ।

खुद में खुद की ही खातिर भटकती ज़िन्दगी है क्यों ।

समन्दर में बसी मछली....................................|

नीरज

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Comment

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Comment by Ashok Kumar Raktale on May 24, 2013 at 8:14am

आदरणीय नीरज जी सुन्दर गीत रचा है, आपकी सुन्दर भावपूर्ण और शिल्पबद्ध रचनाएं मनमोहक लगती हैं. सादर बधाई स्वीकारें.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 22, 2013 at 5:49pm

सुन्दर गीत बधाई 

Comment by बृजेश नीरज on May 21, 2013 at 9:55am

गीत का अन्तिम अंतरा अच्छा है। शुरूआत को और स्पष्ट करने की जरूरत है। इस प्रयास के लिए बधाई!

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 21, 2013 at 7:47am

आ0 नीरज भाई जी, सुन्दर भाव । ’खुदा को खोजने वालों, अपनी भटकन जरा समझो ।
खोज सागर में सागर की, की ये पागलपन जरा समझो ।
खुद में खुद की ही खातिर भटकती ज़िन्दगी है क्यों ।।’ बधाई स्वीकारें। सादर,

Comment by Neeraj Nishchal on May 20, 2013 at 4:52pm

बहुत बहुत शुक्रिया अभिनव साहब

Comment by Abhinav Arun on May 20, 2013 at 3:36pm

श्री नीरज अच्छे भाव और सहज सन्देश वाली इस रचना के लिए हार्दिक बधाई आपको !!

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