वजहों के बोझों तले क्यों , बेवजह है ज़िन्दगी |
जीने वालों के लिए , जैसे सज़ा है ज़िन्दगी |
साँसों के संग ही चल रही साँसों के संग थम जायेगी ,
आती जाती सांसो का एक सिलसिला है ज़िन्दगी |
हमने बनाये जो यहाँ खो जायेंगे वो सब मकाँ
जिसकी मंजिल मौत है वो रास्ता है ज़िन्दगी |
हम जी रहे हैं आज में और सोचते कल की सदा ,
इस जगह को छोड़कर क्यों उस जगह है ज़िन्दगी |
ये दिल हमारा है मगर यहाँ ख्याल है किसी और का ,
दूसरों से मिल रही खुद से जुदा है ज़िन्दगी |
आदमी अपने ही संग आज जी सकता नही ,
खुद से जाने इस कदर क्यों खफा है ज़िन्दगी ।
हम अँधेरे को समझ बैठे थे अपना आशियाँ ,
तुम मिले तो लग रहा जैसे सुबह है ज़िन्दगी ।
Comment
जी ज़रूर आदरणीय अशोक कुमार जी बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय नीरज मिश्रा जी सादर, बहुत सुन्दर शेर कहे हैं यदि आप गजल के विधानों की जानकारी कर लें तो एक खुबसूरत गजल तैयार होगी. मेरी दिली तमन्ना है आप मंच पर, आदरणीय वीनस जी द्वारा बड़ी मेहनत करके गजल के बाबत इतनी अच्छी जानकारी दी है, उसका लाभ लें. सुन्दर भावों के लिए सादर बधाई स्वीकारें.
संजू जी आपका शुक्रिया
श्याम नारायण और विजय मिश्र जी सादर आभार
गीतिका जी, बृजेश जी, राजेश जी सादर आभार और और चर्चा में सम्मिलित ना
sundar abhivyakti
आदरणीय नीरज जी पहले आप द्वारा यह तय किया जाना आवश्यक है कि आप निर्धारित नियमों के तहत रचना लिखेंगे या अपने मन के नियमों के तहत जिससे टिप्पणी करना आसान हो सके। आप वहां फूस को चिन्गारी दिखाकर यहां चले आए। चर्चा में भी सम्मिलित नहीं हैं। यह तो गलत बात है। चर्चा में शामिल हों जिससे आपकी रचना पर चर्चा संभव हो सके।
ये क्या नीरज भाई, उधर कड़वे शब्द मुँह से निकलवा लेते हो और इधर वाह-वाह करवाते हैं, ये तो ठीक नहीं है भाई, किसी एक जगह रहने दें या तो अपनी रचना पर वाह-वाह करने दें या हाय-हाय, बड़ी मुश्किल होती है ।
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