!!! नव गीत !!!
जन्नत सा खुशनुमा ये, लखनऊ है हमारा।
ये चमन है हमारा,
हम सुमन हैं सितारा
ये गोमती सुधारा,
मंगल करे हमारा
हम सादगी से जीते, इतिहास है हमारा।1 जन्नत सा...
नव रूप हो रहे हैं,
नवजात जन्म लेते
लम्बी चुप सी गलियां,
छत पर पतंग उड़ाते
पार हो रही नभ में ये, विकास है हमारा।2 जन्नत सा...
उलझन कभी न होती,
बसती रही कलोनी
बागों के दायरे भी,
सौन्दर्य को बढ़ाते
है नवाबी गवाही, चश्म सांस है हमारा।3 जन्नत सा...
उजड़े हुए से मौसम,
हम पर कभी न छाते
गुलजार हैं सदा से,
मस्ती सदा लुटाते
ये सुन्दर चिकन संवारें, लिबास है हमारा।4जन्नत सा...
मस्जिद लक्ष्मण टीला,
मंदिर भी असंख्य है
कौमी नहीं सुहाते,
बस लखनऊसजाते
ये चौक हजरत गंज, सुभाष है हमारा।5 जन्नत सा...
हुसैन भूल-भुलईया,
दिलकुशा शाम छइयां
हजरत महल पुकारे,
मोती महल संवारें
ये अमीना डालीगंज, उल्लास है हमारा।6
जन्नत सा खुशनुमा ये, लखनऊ है हमारा।
के0पी0सत्यम/मालिक एव अप्रकाशित
Comment
आ0 रक्ताले सर जी, आपका स्नेह और आशीष सदा ही मुझमें एक अद्भुत ऊर्जा का संचार करता है। आपका तहेदिल से शुक्रिया व हार्दिक आभार। सादर,
लखनऊ की सैर और आबो हवा से परिचय कराता सुन्दर गीत रचा है आदरणीय केवल प्रसाद जी कुछ पंक्तियों के भाव तो बहुत सुन्दर हैं .सादर बधाई स्वीकारें.
आ0 राजेश भाई जी, आपका तहेदिल से हार्दिक आभार, आपने परम श्रध्देय सौरभ सर जी का नवगीत उदाहरण प्रस्तुत करके मुझ पर बड़ी कृपा की है क्योकि यह गीत अभी तक मैंने नही पढ़ा था। वैसे तो आप लोगों के नवगीत पढ़ता ही रहता हूं और गौर भी करता हैूं। आपके व सौरभ सर के बीच वार्ता भी पढ़ा है। हां! कहन अवश्य ही बदला हुआ है। कुछ रूढि़वादी जरूर है किन्तु परिवर्तन विकास का प्रतीक है।
आपके विचार सुझावों पर गंभीरता से विचार करूंगा। आपका तहेदिल से शुक्रिया। सादर
केवल जी, आदरणीय सौरभ जी के इस नवगीत को देखिए, इसके बिंब विधान को देखिए (जो बोल्ड अक्षरों में हैं) और प्रवाह के संतुलन को देखिए, आपको बहुत सी बातें स्पष्ट हो जाएंगीं । सादर
छू दो तुम.. . / फिर
सुनो अनश्वर !
थिर निश्चल
निरुपाय शिथिल सी
बिना कर्मचारी की मिल सी
गति-आवृति से
अभिसिंचित कर
कोलाहल भर
हलचल हल्की.. .
अँकुरा दो
प्रति विन्दु देह का
लिये तरंगें
अधर पटल पर.. . !
विन्दु-विन्दु जड़, विन्दु-विन्दु हिम
रिसूँ अबाधित
आशा अप्रतिम.. .
झल्लाये-से चौराहे पर
किन्तु चाहना की गति
मद्धिम !
विह्वल ताप लिए
तुम ही / अब
रेशा-रेशा
खींचो तन पर.. . !!
आ0 राम शिरोमणि भाई जी, प्रिय मित्र! आपका अन्तर्मन से लखनऊ के सरजमीं पर हार्दिक स्वागत है- मुस्कराईये कि आप लखनऊ में है। आपके अपार स्नेह के लिए तहेदिल से हार्दिक आभार। सादर,
आ0 आशुतोष भाई जी, आपके अपार स्नेह के लिए तहेदिल से हार्दिक आभार। सादर,
आ0 नीरज भाई जी, आपके स्नेह के लिए हार्दिक आभार। सादर,
आ0 अभिनव अरून भाई जी, मैं आपको लखनऊ का दर्शन कराने में समर्थ रहा। यह मेरा अहोभाग्य है- मेरी रचना सार्थक हुई। भाई जी! आपका हस्ताक्षर ही मेरे लिए शुभाशीष है। हार्दिक आभार। सादर,
आ0 राजेश भाई जी, मुझे ज्यादा जानकारी तो नहीं है पर जितना समझ में आता है उतना लिखता हूं। नवगीत में लय,धुन हो, मात्रिकता हो, भाव हो, प्रेम हो और अगर अतिशयोक्ति नही भी हो तो गीत होता है। आपका हार्दिक आभार। सादर
sundar ati sundar bhai kewal ji///hame bhi saath le chale bhai ji pichhad gaya hun
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