For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

!!! नव गीत !!!


जन्नत सा खुशनुमा ये, लखनऊ है हमारा।


ये चमन है हमारा,
हम सुमन हैं सितारा
ये गोमती सुधारा,
मंगल करे हमारा
हम सादगी से जीते, इतिहास है हमारा।1 जन्नत सा...


नव रूप हो रहे हैं,
नवजात जन्म लेते
लम्बी चुप सी गलियां,
छत पर पतंग उड़ाते
पार हो रही नभ में ये, विकास है हमारा।2 जन्नत सा...


उलझन कभी न होती,
बसती रही कलोनी
बागों के दायरे भी,
सौन्दर्य को बढ़ाते
है नवाबी गवाही, चश्म सांस है हमारा।3 जन्नत सा...


उजड़े हुए से मौसम,
हम पर कभी न छाते
गुलजार हैं सदा से,
मस्ती सदा लुटाते
ये सुन्दर चिकन संवारें, लिबास है हमारा।4जन्नत सा...


मस्जिद लक्ष्मण टीला,
मंदिर भी असंख्य है
कौमी नहीं सुहाते,
बस लखनऊसजाते
ये चौक हजरत गंज, सुभाष है हमारा।5 जन्नत सा...


हुसैन भूल-भुलईया,
दिलकुशा शाम छइयां
हजरत महल पुकारे,
मोती महल संवारें
ये अमीना डालीगंज, उल्लास है हमारा।6
जन्नत सा खुशनुमा ये, लखनऊ है हमारा।

के0पी0सत्यम/मालिक एव अप्रकाशित

Views: 625

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 24, 2013 at 1:10pm

आ0 रक्ताले सर जी,  आपका स्नेह और आशीष सदा ही मुझमें एक अद्भुत ऊर्जा का संचार करता है।   आपका तहेदिल से शुक्रिया व हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 24, 2013 at 8:23am

लखनऊ की सैर  और आबो हवा से परिचय कराता सुन्दर गीत रचा है आदरणीय केवल प्रसाद जी कुछ पंक्तियों के भाव तो बहुत सुन्दर हैं .सादर बधाई स्वीकारें.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 21, 2013 at 8:20pm

आ0 राजेश भाई जी, आपका तहेदिल से हार्दिक आभार, आपने परम श्रध्देय सौरभ सर जी का नवगीत उदाहरण प्रस्तुत करके मुझ पर बड़ी कृपा की है क्योकि यह गीत अभी तक मैंने नही पढ़ा था। वैसे तो आप लोगों के नवगीत पढ़ता ही रहता हूं और गौर भी करता हैूं। आपके व सौरभ सर के बीच वार्ता भी पढ़ा है। हां! कहन अवश्य ही बदला हुआ है। कुछ रूढि़वादी जरूर है किन्तु परिवर्तन विकास का प्रतीक है।
आपके विचार सुझावों पर गंभीरता से विचार करूंगा। आपका तहेदिल से शुक्रिया। सादर

Comment by राजेश 'मृदु' on May 21, 2013 at 2:10pm

केवल जी, आदरणीय सौरभ जी के इस नवगीत को देखिए, इसके बिंब विधान को देखिए (जो बोल्‍ड अक्षरों में हैं) और प्रवाह के संतुलन को देखिए, आपको बहुत सी बातें स्‍पष्‍ट हो जाएंगीं ।  सादर

छू दो तुम.. . / फिर
सुनो अनश्वर ! 

थिर निश्चल
निरुपाय शिथिल सी
बिना कर्मचारी की मिल सी
गति-आवृति से
अभिसिंचित कर
कोलाहल भर
हलचल हल्की.. .

अँकुरा दो
प्रति विन्दु देह का   
लिये तरंगें
अधर पटल पर.. . !

विन्दु-विन्दु जड़, विन्दु-विन्दु हिम
रिसूँ अबाधित 
आशा अप्रतिम.. .
झल्लाये-से चौराहे पर
किन्तु चाहना की गति
मद्धिम !

विह्वल ताप लिए
तुम ही / अब
रेशा-रेशा 
खींचो तन पर.. . !!

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 20, 2013 at 10:40pm

आ0  राम शिरोमणि भाई जी,   प्रिय मित्र! आपका अन्तर्मन से लखनऊ के सरजमीं पर हार्दिक स्वागत है-  मुस्कराईये कि आप लखनऊ में है। आपके अपार स्नेह  के लिए तहेदिल से हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 20, 2013 at 10:36pm

आ0  आशुतोष भाई जी,   आपके अपार स्नेह  के लिए तहेदिल से हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 20, 2013 at 10:34pm

आ0  नीरज भाई जी,   आपके स्नेह के लिए हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 20, 2013 at 10:32pm

आ0  अभिनव अरून भाई जी,  मैं आपको लखनऊ का दर्शन कराने में समर्थ रहा।  यह मेरा अहोभाग्य है- मेरी रचना सार्थक हुई।  भाई जी!  आपका हस्ताक्षर ही मेरे लिए शुभाशीष है।  हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 20, 2013 at 10:26pm

आ0 राजेश भाई जी,  मुझे ज्यादा जानकारी तो नहीं है पर जितना समझ में आता है उतना लिखता हूं।   नवगीत में लय,धुन हो, मात्रिकता हो, भाव हो, प्रेम हो और अगर अतिशयोक्ति नही भी हो तो गीत होता है।   आपका हार्दिक आभार।  सादर

Comment by ram shiromani pathak on May 20, 2013 at 9:26pm

sundar ati sundar bhai kewal ji///hame bhi saath le chale bhai ji pichhad gaya hun

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
7 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
9 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
21 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
Monday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service