!!! नवगीत !!!
नयनन के कोर से, ढरकि गये अंसुआं।
खारे जल बिन्दु भी, बन गये मोतियां।।
जीवन के रंग में,
गुलशन बसंत में-
पतझर के ढ़ंग से,
उजड़ गयी बगिया।1...खारे जल..
नयनन के नील में,
सागर सी झील मे-
रेशम की गेंद संग,
डूब गये छलिया।2...खारे जल..
कर्म के सफर में,
काटों के पथ पर,
नागों को मथ कर,
नाचे गउ चरइया।3....खारे जल..
धर्म की जीत को,
सत्यम के रीति को,
गीता के गीत को,
गाते रहे रसिया।।4...खारे जल..
के0पी0सत्यम/मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ0 रक्ताले सर जी, सुप्रभात व सादर प्रणाम! सुबह-सुबह आपका स्नेह और आशीष पाकर मन अति गदगद हो गया। आपका अन्तर्मन से हार्दिक आभारी हूं। सादर,
आदरणीय केवल प्रसाद जी सादर, बहुत सुन्दर नवगीत रचा है मंच पर हुई कार्यशाला का असर नवगीत की रचना में दिखने लगा है. बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.
आ0 जवाहर लाल जी, आपके स्नेह एवं अनुकरणीय प्रसंशा हेतु आपका तहेदिल से हार्दिक आभार। सादर,
धर्म की जीत को,
सत्यम के रीति को,
गीता के गीत को,
गाते रहे रसिया।।4...खारे जल..
सुंदर भावयुक्त पंक्तियाँ!
आ0 विरकाळी जी, आपके स्नेह हेतु बहुत-बहुत हार्दिक आभार। सादर,
आ0 संदीप जी, आपके स्नेह हेतु बहुत-बहुत हार्दिक आभार। सादर,
बहुत सुंदर प्रयास हुआ है आदरणीय
सादर बधाई
थोड़ा तुकांत पर भी पकड़ बनाइए और धीरे धीरे निखार आ जाएगा
सादर
आ0 राम शिरोमणि जी, प्रिय मित्र! आपके स्नेह और प्रसंशा के लिए तहेदिल से हार्दिक आभार। सादर,
आ0 कुशवाहा जी, आपके स्नेह और प्रसंशा के लिए तहेदिल से हार्दिक आभार। सादर,
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