!!! गजल !!!
वज्न-2122, 2122, 2122, 212
तुम जो आये जिन्दगी में, बात सादर हो गयी।
जिन्दगी की सारी सरिता, आज सागर हो गयी।।
आपसी मत भेद भूले, कामना सच हैं नये।
बात रातों की करे तो, चांदनी कर हो गयी।।
हुस्न के जल्वे दिखे है, शाम शबनम की खुशी।
हम सफर जो साथ रहता, आंख कातर हो गयी।।
बन्दगी अब बन्दगी है, रंग - रंगत एक से।
आज फिर राधा-किशन है, बात सुन्दर हो गयी।।
आपकी ही बांसुरी में, गोपियों की लालसा।
राम का दर्शन कराती, मुक्ति सुखकर हो गयी।।
हम नहीं तो क्या सही है, क्या गलत है रास्ता।
आप से ही पूंछता हूं, हाल कमतर हो गयी।।
नफरतों की सोच ‘सत्यम‘,आग को अब रोक दो।
हर कदम अब छांव देखो, धूप बदतर हो गयी।।
के0पी0सत्यम/मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ0 रक्ताले सर जी, आपके स्नेह और आशीष से सदा ही मेरा मान बढ़ता है। आपका तहेदिल से हार्दिक अभार। सादर,
वाह! आदरणीय केवल प्रसाद जी सुन्दर गजल. सादर बधाई स्वीकारें.
आ0 विजय निकोर जी, आपके स्नेह हेतु तहेदिल से हार्दिक आभार, सादर,
आ0 राजेश कुमारी मैम जी, आपके स्नेह हेतु तहेदिल से हार्दिक आभार, सादर,
आदरणीय केवल प्रसाद जी:
सुन्दर गज़ल के लिए बधाई।
सादर,
विजय निकोर
बहुत सुन्दर सधी हुई ग़ज़ल देखकर केवल प्रसाद जी आपसे अपेक्षा और बढ़ गई है फिलहाल इस ग़ज़ल के लिए दाद कबूल करें |
आ0 वीनस भाई जी, सादर प्रणाम! गजल पर आपके स्नेह, आशीष और टिप्पणी ने मेरे मन को अत्यधिक आश्वस्त किया है। जी! मैं अभी भी पूर्णता संतुष्ट नहीं था किन्तु इतनी बधाईयां पाकर भी मुझे संतोष नही हुआ। जी, अब आपके आशीष वचन से मैं कृत्य-कृत्य हुआ। जी भाई जी, कोई भी साधना अनवरत, अनन्त और अबाध्य गति से चलती रहती है। मैं सदैव ही इस बात को जहन में संभाल कर रखूंगा। आपके स्नेह दृष्टि और देववचन के लिए आपका तहेदिल से बहुत-बहुत हार्दिक आभार। सादर,
केवल प्रसाद जी
ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकारें
शिल्प को साध कर खुद को एक पायदान ऊपर पहुँचा हुआ पाना निश्चित ही सुखद अनुभूति है
इसके लिए भी आपको बधाई
कहन को साधना और सुधारना निरंतर होने वाला कार्य है जो पूरी ज़िंदगी चलता रहता है ....
कई अशआर पसंद आए
आ0 राम शिरोमणि जी, प्रिय मित्र, आपको ओ0बी0ओ0 पर अवकाश के बाद पुनः देखकर बड़ा हर्ष हुआ। गजल की सराहना एवं अपार स्नेह के लिए आपका तहेदिल से हार्दिक आभार। सादर,
आ0 रोशनी धीर जी, गजल की सराहना एवं स्नेह के लिए आपका तहेदिल से हार्दिक आभार। सादर,
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