!!! गजल !!!
वज्न- 2122, 1212, 22
ऐ खुदा शहर की अदा क्या है।
आज बन्दा लुटा बता क्या है।।
दिल ने आहट सुना जवां जैसे।
तुम न आए अगर दुवा क्या है।।
जां में उल्फत सनम कसम खाये।
रब न मंजिल यहां मिला क्या है।।
शहर जल कर धुआं-धुआं नभ तक।
फिर न जाने सुबह हुआ क्या है।।
हम मिलेंगे वहां जहां ’सत्यम’।
अब तो नफरत भुला खता क्या है।।
के0पी0सत्यम/मौलिक व अप्रकाशित
Comment
अरुण अनंत जी
पिछले दिनों ओ बी ओ पर एक महत्वपूर्ण चर्चा हुई थी मुझे विश्वास है कि आप उसको देखने के लिए अपना कुछ कीमती समय निकाल सकेंगे, आपको बहुत कुछ स्पष्ट हो जायेगा
www.openbooksonline.com/group/gazal_ki_bateyn/forum/topics/5170231:...
मैं आपकी इस बात से सहमत हूँ कि ग़ज़ल पर केवल प्रसाद जी द्वारा और समय दिया जाता तो ग़ज़ल इससे कहीं बेहतर होती ...
वैसे ऐसी राइज जमीन पर कोशिश करना भी अपने आप में हौसले की बात है
khoob hai Kewal Prasad ji. chlte rahiye !!
आदरणीय केवल भाई यदि किसी अपवाद के चलते यह संभव हुआ है तो अच्छा है परन्तु अभी तक जो मैंने पढ़ा है जैसे नज़र, शहर, जहर 12 ही होता है, और मैं स्वयं भी ऐसी ही उपयोग किया है अब तो मेरे लिए भी यह जानना अति आवश्यक हो गया है किंचित मैं ही तो कहीं किसी धोखे में तो नहीं. हार्दिक आभार भाई जी बताने हेतु.
आ0 अरून अनन्त भाई जी, जी! पिछले तरही गजल महोत्सव में ’शहर’ पर काफी चर्चा हुई थी जिसमें आदरणीय वीनस भाई जी ने इसके मात्रा..शह..2 और ..र..1 बताई थी उसी को ध्यान में रखकर ही यह प्रयोग किया है। आ0 वीनस भाई जी के भी विचार जानना चाहूंगा। कृपया अनुकम्पा करने की कृपा करें। आपके स्नेह के लिए तहेदिल से हार्दिक आभार। सादर
आ0 बृजेश भाई जी, आपके स्नेह के लिए तहेदिल से हार्दिक आभार। सादर
आ0 आशुतोष भाई जी, आपके स्नेह और प्रसंशा के लिए आपका तहेदिल से हार्दिक आभार। सादर
केवल भाई थोड़ी जल्दबाजी कर गए, मजा आते आते रह गया, मेरी आदत न डालें मित्र हाहाहा मैं भी कुछ ज्यादा जल्दबाजी कर जाता हूँ. खैर प्रयास हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें.
!!! गजल !!!
वज्न- 2122, 1212, 22
२ १ २ १ २
ऐ खुदा शहर ???? भाई मात्रा गिनती में गच्चा खा गए.
केवल भाई आपके इस प्रयास पर आपको हार्दिक बधाई!
सुंदर ग़ज़ल बहुत बधाई
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