भीषण विनाशकारी बदलाव हो रहा है,
मासूमियत पे जमकर पथराव हो रहा है,
आदत बदल रही है फितरत बदल रही है,
रिश्तों में प्यार का भी अभाव हो रहा है,
अरमां तमाम टूटे बिखरे नज़र से सपने,
सूखा हुआ जखम था फिर घाव हो रहा है,
कुर्ता सफ़ेद लेकिन है दागदार देखो,
नेताओं का अनोखा स्वभाव हो रहा है,
ना व्याकरण न भाषा है शब्दकोष खाली,
हिंदी को भूल इंग्लिश में वाव हो रहा है...
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
भाई अरुण शर्मा जी सादर, व्यवस्थाओं पर आक्रोश व्यक्त करती सुन्दर गजल. सादर बधाई स्वीकारें.
achchhi samyik ghazal hai shri arun ji !!
आज क्लिष्ट शब्दों का प्रयोग नहीं कर सकते ,प्राकृत शब्द लोगों को मारूक लगते हैं , लोग वाग टोक देंगे -"आपकी बात समझ में नहीं आती ,हिंदी में बोलिए न | क्या अंग्रेजी में बोल रहे हैं ? "
परम्पराएँ एकदिन में नहीं बदलती ,इसके पोषक हममें से ही हैं ,यह छद्मवेशीओं के सधे हुए कूटनीतिक प्रयास का नतीजा है कि हम हिंगलिश के दौर में हैं ' wow.' और ' ooch ' पहले -दूसरे वर्ग के बच्चे बोलते हैं ,वे ना ही इसका full form जानते हैं और बहुत के तो बाप-माँ भी नहीं ही जानते होंगे मगर बोलते हैं क्योंकि उन्हें पढ़ाई के पहले दिन से हिंदी वर्णाक्षर की जगह English Alphabets सिखाया जाता है तो उन्हें 'अहा ' और ' ओह ' कहाँ से आएगा ?यह संस्कृति घर में जन्म लेती है आकाश से नहीं टपकती . बाकायदा हमें हमारी पहचान से बिलग किया जा रहा है , धनावलम्बिओं द्वारा बेहद सलीके से हमारी भाषा ,संस्कृति को धूलधूसरित किया जा रहा है और हम भी मौन रह इसे प्रश्रय दे रहे हैं .
अरुणजी ! आपकी ऊँगली सही जगह पर इशारा कर रही है ,.शुभेच्छा .
हार्दिक आभार आदरणीय बृजेश भाई स्नेह यूँ ही बनाये रखिये.
बहुत ही सुन्दर!
ना व्याकरण न भाषा है शब्दकोष खाली,
हिंदी को भूल इंग्लिश में वाव हो रहा है..........सभी शेर एक से बढ़ कर एक
हार्दिकशुभ कामनाएं आपको और आपके रचनाकर्म को
वाह अरून भाई बहुत सुन्दर! अब तो आधी से अधिक हिन्दी अंग्रेजी में ही बोली जाती है। लोग उसे ही हिन्दी समझते हैं। वैसे भी अंग्रेजियत के बोझ तले दबी कुचली हिन्दी को कब राहत मिली।
इस भावाभिव्यक्ति पर आपको बधाई!
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