(प्रवास पर होने के कारण तरही मुशायरा अंक ३५ की ग़ज़ल यहाँ पेश कर रही हूँ )
आज जिस हाल में खुदा लाया
वक्त सपने वहीँ सजा लाया
रात सपने हसीन लाती है
दिन बुलाकर करीब क्या लाया
चाँदनी से सितारे रूठेंगे
चाँद दिल रात का चुरा लाया
तुम मिलोगे हजार कोशिश की
फिर हमें आज वास्ता लाया
जाते- जाते यही कहा उसने
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया
मोड़ जिसपर जुदा हुए थे हम
फिर वहीँ आज रास्ता लाया
कैसे भरता उड़ान वो अपनी
वक़्त जाकर उसे उठा लाया
आस्मां पर निगाह थी अपनी
वक़्त काफ़िर नज़र झुका लाया
मौज़ अपने रुमाल में रख ले
नीर ‘पुखराज़’ जो बहा लाया
आग जिसको तलाश करती थी
वो हवा एक काफिला लाया
खिल न पाये गुलाब भी देखो
'राज' किसका नसीब क्या लाया
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Comment
आदरणीय अशोक रक्ताले जी तहे दिल से शुक्रिया आपको ग़ज़ल पसंद आई |
आदरणीय सौरभ जी आपका दिल से शुक्रिया ,भांजे की शादी में मुंबई गई थी आज ही लौटी हूँ मुशायरे को बहुत मिस किया कल सबकी ग़ज़ल पढूंगी
प्रिय शालिनी जी तहे दिल से शुक्रिया आपका
डॉ .आसुतोष बाजपेई जी आपकी प्रतिक्रिया सर आँखों पर
प्रिय गीतिका जी आपका प्रभूत आभार आप सब को मैंने भी मिस किया सच पूछो तो ओ बी ओ का कोई भी महोत्सव मैं मिस नहीं करना चाहती
प्रिय अरुन शर्मा अभिभूत हूँ आपकी प्रतिक्रिया पढ़ कर सच में सच में हम ओ बी ओ से इस तरह जुड़ गए हैं की कहीं भी जाएँ मन वहीँ पड़ा रहता है आज ही आई हूँ कल वक़्त मिलते ही सभी की ग़ज़लें पढूंगी तहे दिल से शुक्रिया
जीतेंद्र जी आपकी प्रतिक्रिया हेतु तहे दिल से आभारी हूँ
प्रिय सखी शशि पुरवार जी आपकी प्रशंसा संभाल कर रख ली है हार्दिक धन्यवाद ।
श्याम नारायण वर्मा जी तहे दिल से शुक्रिया आपको ग़ज़ल पसंद आई |
आदरेया राजेश कुमारी जी सादर, बहुत सुन्दर गजल कही है सभी अशआर बहुत ही खूब हैं दिली दाद कुबूल फरमाएं.
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