मैं कैसे सोऊँ ??
नौ माह का अंकुर पूर्ण हुआ
व्याकुल जग पंथ निहारता
गर्भ नाल में जब हुई पीड़ा
रक्त माँ- माँ कह पुकारता
मैं कैसे सोऊँ ?
जब बिस्तर उसका हुआ गीला
वो करवट करवट जागता
मुख ,उँगलियाँ मचलती वक्ष पर
पय उदधि हिलौरे मारता
मैं कैसे सोऊँ ?
रोटी का कौर लिए फिरती
वो नाक चढ़ा चिंघाड़ता
मैं कलम किताब दूँ हाथों में
वो आगे- आगे भागता
मैं कैसे सोऊँ ?
जब देर सवेर घर में आता
शंकित मन फन फुफकारता
वो प्रश्न का उत्तर ना देकर
निष्पंद शून्य में ताकता
मैं कैसे सोऊँ ?
मैं रात दिन उसकी राह तकूँ
मन उसकी खबर सिहारता
हर वक़्त मुझे है फिकर उसकी
जब वो सरहद पर जागता
मैं कैसे सोऊँ ?
जब अंश मेरा हो खतरे में
औ वक़्त खड़ा धिक्कारता
होकर जख्मी ज्यों अरण्य सिंह
अस्तित्व मेरा हुंकारता
मैं कैसे सोऊँ ??
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Comment
आदरणीय अशोक जी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया ने रचना को सार्थकता प्रदान की हार्दिक आभार आपका ।
सन्तान किसी भी वय में आ जाए माँ का दिल उसके लिए सदा ही धड़कता रहता है. वाह! आदरणीया राजेश कुमारी जी. बहुत सुन्दर और मार्मिक रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें.
राम शिरोमणि पाठक जी आपको रचना पसंद आई हार्दिक आभार आपका |
आदरणीया सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारे ///////
प्रिय सीमा जी सच कहा माँ कितना भी कंट्रोल करे बच्चों के प्रति उसकी चिंता बनी रहती है बस अपने अनुभव को ही शब्दों में ढाला है आपको पसंद आई रचना धन्य हुई हार्दिक आभार आपका |
संतान की चिंता हर घड़ी होना हर स्थिति में होना ही शायद माँ होना है ..बहुत सुन्दर रचना राजेश जी .....
आदरणीय प्रदीप कुमार जी आपको रचना पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ हार्दिक आभार आपका |
मैं कैसे सोऊँ ?
मैं रात दिन उसकी राह तकूँ
मन उसकी खबर सिहारता
हर वक़्त मुझे है फिकर उसकी
जब वो सरहद पर जागता
मैं कैसे सोऊँ ?
जब अंश मेरा हो खतरे में
औ वक़्त खड़ा धिक्कारता
होकर जख्मी ज्यों अरण्य सिंह
अस्तित्व मेरा हुंकारता
मैं कैसे सोऊँ ??
एक मां कैसे सो सकती
कभी नही
मार्मिक एवं ..
सादर बधाई
आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी उत्साहित करती हुई प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपको ये प्रस्तुति पसंद आई |
माँ और शिशु के भावों को लेकर मातृ दिवस दिवस पर लिखी गयी सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारे
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