ग़ज़ल -
नहीं युधिष्ठिर एक यहाँ पर ।
यक्ष छिपे हर तरफ बहत्तर ।
क्यों बैठा सीढी पर थककर ,
चल कबीर चौरा के मठ पर ।
साखी शबद सवैया गा तू ,
लोभ छोड़ अब चल दे मगहर ।
रिश्ते सारे स्वार्थ के धागे ,
झूठे हैं नातों के लश्कर ।
तुम गुडगावां के गुण गाओ ,
मेरे मन को भाता बस्तर ।
सेवक कोई रहा नहीं अब ,
सबके भीतर बैठा अफसर ।
ज्ञान की पगड़ी सर पर भारी ,
मगर ज़ुबाने जैसे नश्तर ।
- अभिनव अरुण
[01022013]
Comment
"क्यों बैठा सीढी पर थककर ,
चल कबीर चौरा के मठ पर ।" सुंदर और प्रभावी अभिव्यक्ति. बधाई.
और हाँ आपके कहने के बाद अब गाफ़ का अर्थ जान गया हूँ ..बहुत साधुवाद आपका !!
सादर प्रणाम आदरणीय !! शुभ शुभ !!!!!
//बताने वाले कम मिलते हैं ..मुश्किल से बताते हैं .. यहाँ वीनस जी के कक्षा को जहां सहज सुलभ जानकारी है .. और संशय दूर करने को आप जैसे मान्यवर ..सो भला है ..वैसे मैं जिस फील्ड में हूँ रेडिओ में मेरा अनुभव कुछ ऐसा रहा है की मैं भी अब सीखाने से दूर ही रहता हूँ//
राउर अब ई कुल्हि कहला प हम का कहीं, भाईजी ? जे, हमनी दूनो जाना ओबीओ प के अब सबसे पुरान सदस्यन में से बानी जा, ओह ओबीओ प जहवाँ के उदेसवे आजु ले सीखल-सिखावल रहल बा.. आ रही ..
जय-जय
अब अगर कहूं तो आप मानेंगे नहीं ..तक्तीह जिसे आप सब कहते हैं वह अब जाकर सीख सका हूँ ...
कुछ दिन पहले तकबुले रदीफ़ जाना है उसे ठीक किया है .. अब आपने बताया तो गाफ़ भी पूछ जान लूँगा ... बताने वाले कम मिलते हैं ..मुश्किल से बताते हैं .. यहाँ वीनस जी के कक्षा को जहां सहज सुलभ जानकारी है .. और संशय दूर करने को आप जैसे मान्यवर ..सो भला है ..वैसे मैं जिस फील्ड में हूँ रेडिओ में मेरा अनुभव कुछ ऐसा रहा है की मैं भी अब सीखाने से दूर ही रहता हूँ .. tippni men कुछ मात्रा की त्रुटियाँ हो रही हैं यह संज्ञान में हैं ..
इस ग़ज़ल पर परिश्रम कम हुआ है मानता हूँ पर आपने स्नेह लुटाया यह मेरा सौभाग्य है .सादर प्रणाम !!
वाह .. . इस क़ामयाब कोशिश पर बधाई, भाईजी
तुम गुडगावां के गुण गाओ ,
मेरे मन को भाता बस्तर ।
सेवक कोई रहा नहीं अब ,
सबके भीतर बैठा अफसर ।
ज्ञान की पगड़ी सर पर भारी ,
मगर ज़ुबाने जैसे नश्तर ।
उपरोक्त इन तीन अश’आर ने तो जैसे मुग्ध कर दिया. बहुत-बहुत शुक्रिया.
आपने आठ यानि सम ग़ाफ़ लेकर मिसरे क्यों बनाये ? कोई विशेष कारण ?
वैसे ग़ज़ल शानदार जानदार है.
प्रियंका जी शेर पसंद आया लिखना सार्थक हुआ बहुत शुक्रिया आदरणीय। !
बहुत आभार संजय जी और इस शेर के लिए मुबारकवाद क्या सटीक कहा है !!
ज्ञान की पगड़ी सर पर भारी ,
मगर ज़ुबाने जैसे नश्तर.......सुन्दर बहुत बढ़िया .....बधाई सर
बहुत खूब आ अभिनव अरुण जी... बधाई स्वीकारें...
हरा भरा था लाल हुआ है,
चीख रहा है मेरा बस्तर.
सादर...
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