हर रूप में हर रंग में,
कभी दूर से कभी संग में
अकेले कमरा-बंद में ,
कभी भीड़ के हडकंप में
तपते आँगन में नंगे पाँव से,
कभी पीपल की ठंडी छांव से
हकीक़त कि कम्पित नाव से,
कभी सपनों के रेशमी गांव से
नदिया कि बहती धार पे,
कभी क्षितिज के उस पार पे
पेड़ों कि हिलती डार पे,
कभी वीणा कि झंकृत तार पे
दूर चाँद के मुस्कुराने पर,
कभी दिन में आंसू बहाने पर
फूलों के खिलखिलाने पर,
कभी उम्मीदें टूट जाने पर
डबडबाई आँखें छिपाते हुये,
कभी खुलकर ठहाके लगाते हुये
सँभलते-लड़खड़ाते हुये,
कभी रागिनी गुनगुनाते हुये
जीवन के झिलमिल कोणों को,
इस राह के अगणित मोड़ों को
लम्हों के सारे जोड़ों को,
हमने पल-पल देखा है||
Comment
आदरणीय Jitendra Pastariya जी,
शुभकामनाओं हेतु बहुत-२ धन्यवाद |
साभार: प्रियंका
आदरणीय Ashok Kumar Raktale जी,
आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणीं और बधाई हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद I
साभार:प्रियंका
आदरणीया प्रियंका जी बहुत सुन्दर रचना है मुझे एक बहुत बड़े से मुक्तक के समान लग रही है. बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.
आ० Shijju S. जी, बहुत-बहुत धन्यवाद |
साभार प्रणाम
आ०. Dr.Prachi Singh आपके प्रोत्साहन, परामर्श एवं शुभकामनाओं हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद |
आपकी परामर्श को धारणा में लाने का यथासंभव प्रयास करुँगी...
सादर प्रणाम
प्रियंका जी अपनी भावनाओं को आपने खुबसूरती से शब्दों में उकेरा है, इस कविता के लिये आपको बधाई।
प्रिय प्रियंका जी
आपके लेखन की सहजता प्रभावित करती है..
लेकिन अभी अभिव्यक्ति को शिल्प के सुगढ़ आधार की ज़रूरत है.. प्रयास कीजिये, आपके लेखन की संभावनाएं असीम हैं
शुभकामनाएँ
सभी मित्रों को साभार धन्यवाद :-)
बहुत ही सुन्दर! आपको बधाई इस सुन्दर रचना पर!
सतत अध्ययन और लेखन आवश्यक है कलम की साधना और साधने हेतु।
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