अद्भुत कला है
बिना कुछ किये
दूजे के कामों को
खुद से किया बताकर
बटोरना वाहवाही...
जो लोग
महरूम हैं इस कला से
वो सिर्फ खटते रहते हैं
किसी बैल की तरह
किसी गधे की तरह
ऐसा मैं नही कहता
ये तो उनका कथन है
जो सिर्फ बजाकर गाल
दूसरों के कियेकामों को
अपना बताकर
गिनाते अपनी उपलब्धियां...
क्या करूँ
मुझमें ऐसी कोई खासियत नही
ऐसे कोई गुण नही
इसीलिये हमेशा की तरह
खटते रहता हूँ
पदते रहता हूँ मैं ...
Comment
यह कलियुग है - पण्डित सोई जो गाल बजाबा , इस दौर में करने वालों की अहमियत नहीं हैं , लंगूरों का जमाना है .
आज के सच की जमीन को बहुत जाएज मुकाम दिया है आपने . बहुत सही .
यथार्थ भाव की सुन्दर अभिव्यक्ति.सादर बधाई स्वीकारें आदरणीय अनवर सौहेल साहब
उफ़्फ़ !
रचना से उमगते सच ने हिला कर रख दिया आदरणीय अनवर सुहैल भाईजी.
इसके आगे कुछ न कहूँगा. आपकी रचनाधर्मिता आपके रचनाकर्म को इसीतरह से सचेत तथा सचेष्ट रखे.
सादर
bahut sunda rachna ... aisaa hota hai samaaj me... koi karta hai koi kahta hai...
श्री अनवर जी यथार्थ परक रचना के लिए हार्दिक बधाई !
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