बहर : २१२२ १२१२ २२
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बाजुओं की थकान जिंदा रख
जीतने तक उड़ान जिंदा रख
आँधियाँ डर के लौट जाएँगीं
है जो खुद पे गुमान जिंदा रख
तेरा बचपन ही मर न जाय कहीं
वो पुराना मकान जिंदा रख
बेज़बानों से कुछ तो सीख मियाँ
तू भी अपनी ज़बान जिंदा रख
नोट चलता हो प्यार का भी जहाँ
एक ऐसी दुकान जिंदा रख
जान तुझमें ये डाल देंगे कभी
नाक, आँखें व कान जिंदा रख
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
बहुत ही सुन्दर! विशेष दाद रचना के तेवर को! मेरी बधाई स्वीकारें!
पुरकशिश ग़ज़ल.. वाह एक से बढ़ कर एक शे'र ..
तेरा बचपन ही मर न जाय कहीं
वो पुराना मकान जिंदा रख-- बेहतरीन लगा.. सादर,
आदरणीय धर्मेन्द्र जी,
तेरा बचपन ही मर न जाय कहीं
वो पुराना मकान जिंदा रख ... वाह
उम्दा ग़ज़ल हार्दिक बधाई ////////////
बाजुओं की थकान जिंदा रख
जीतने तक उड़ान जिंदा रख... वाह!!
आदरणीय धर्मेन्द्र जी, इस बढ़िया गजल के लिए सादर बधाई स्वीकारें....
आदरणीय धर्मेन्द्र जी, इस ग़ज़ल के लिए हार्दिक धन्यवाद.
हर शेर में ताव है, बहाव है.
ढेर सारी दाद कुबूल करें
शभम्
sundar joshila andaaj
जीवन की सच्चाई !...........अति सुंदर !
वाह वाह वाह गज़ब गज़ब गज़ब अप्रितम आदरणीय सभी के सभी अशआर लाजवाब हुए हैं, खासकर इन दो अशआरों हेतु विशेष तौर पर दाद कुबूल फरमाएं. इस मुकम्मल ग़ज़ल हेतु हार्दिक बधाई. जय हो
आँधियाँ डर के लौट जाएँगीं
है जो खुद पे गुमान जिंदा रख ... लाजवाब
तेरा बचपन ही मर न जाय कहीं
वो पुराना मकान जिंदा रख ... वाह वाह वाह
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