For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदरणीया कल्पना जी के सुझाव के अनुसार रचना में सुधार का प्रयास किया है। कृपया आप सुधी जन इसे एक बार फिर देखने का कष्ट करें।

2122, 2122, 2122, 212 

चांदनी भी धूप जैसी रात भर चुभती रही

याद जलती सी शमा बन देह में घुलती रही

 

सह रहे थे तीर कितने वक्त से लड़ते हुए

भावना तो संग मेरे मौन बस तकती रही

 

ये सुबह भी रात का आभास देती है मुझे

इन उजालों में अंधेरे की लहर दिखती रही

 

दर-ब-दर हो हम तुम्हारे प्यार को ढूंढा किए

प्रेम की इक ओढ़ चादर वासना फिरती रही

 

आंख ने तो अब सपन ही  देखना चाहा नहीं

नींद ये फिर भी मुझे बदनाम ही करती रही

 

खोजता मैं फिर रहा हूं मस्तियां वो गांव की

भीड़ अब इस शहर की हर पल मुझे छलती रही

छेड़ दी ज्यों ही हवा ने पंखुड़ी गीली ज़रा

देर तक इन डालियों से ओस सी झरती रही

                     - बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 1437

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Naveen Mani Tripathi on November 8, 2016 at 10:24am
ईता दोष में जली ईता दोष और ख़फ़ी ईता दोष पढ़ा है सम्भवतः यह जली ईता दोष आता है । फिर भी ग़ज़ल बेमिशाल लगी ।
Comment by बृजेश नीरज on June 9, 2013 at 3:16pm

आदरणीय आबिद जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on June 9, 2013 at 3:15pm

आदरणीया सीमा अग्रवाल जी आपका हार्दिक आभार! आपने जिन चीजों को इंगित किया है उन्हें भविष्य में सुधारने का प्रयास करूंगा। यह भी ध्यान रखूंगा कि आगे संशोधनों को नीचे अलग से पोस्ट करूं जिससे चर्चा की सार्थकता बनी रहे। वैसे कोशिश यह रहेगी कि कमी न होने पाए जिससे कि संशोधन के लिए बार बार एडमिन साहब को तंग न करूं।
सादर!

Comment by Abid ali mansoori on June 9, 2013 at 1:11pm
आदरणीय बृजेश नीरज जी ग़ज़ल का हर एक शब्द काबिले तारीफ है!
Comment by seema agrawal on June 9, 2013 at 12:45pm

इससे पहले जो ग़ज़ल पोस्ट की गयी थी और जिसके आधार पर ये विस्तृत चर्चा हुयी उस ग़ज़ल को आपको हटाना नहीं चाहिए था बल्कि उसे और संशोधित दोनो गज़लों को यहाँ होना चाहिए जिससे संशोधन को तुलनात्मक रूप में पढ़ा और समझा सके l तभी इस ग़ज़ल पर की गयी इस लम्बी चर्चा का लाभ उठा जा सकता है l

अब बात करती हूँ आपकी ग़ज़ल की कहन की ... बेहद कोमल और संवेदनशील बयानी सभी अश'आर पूर्णतयः परिपक्व सोच की उपज बृजेश जी हर शेर के लिए एक एक बधाई कबूल करिए 

शिल्प गत कमी तो मुझे अब दिखाई नहीं देती बस घुलती,चुभती के साथ खुलती  जैसे काफिये होने चाहिए थे शायद ...हिंदी काव्य में तो इसे स्वीकार किया जाता पर शायद ग़ज़लों में नहीं ...शुभकामनाएं 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 8, 2013 at 9:50am
"सादर आभार आदरणीय...ब्रजेश जी "
Comment by बृजेश नीरज on June 8, 2013 at 9:42am

आदरणीय जितेन्द्र जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 8, 2013 at 9:36am
आदरणीय..ब्रजेश जी, बहुत उम्दा गजल प्रस्तुत की आपने "ये सुबह भी रात का आभास देती है मुझे, इन उजालों में अंधेरों की लहर दिखती रही "...तहे दिल से "शुभकामनाऐं स्वीकार करें "
Comment by वीनस केसरी on June 8, 2013 at 9:06am

बृजेश भाई,
धन्यवाद आपका, कि एक जरूरी काम जो छूट रहा था इसी बहाने फिर से शुरू हो सका ....
सादर

Comment by बृजेश नीरज on June 8, 2013 at 9:01am

वीनस भाई आपका हार्दिक आभार! इस बात के लिए विशेष तौर पर कि आपने इतनी त्वरित गति से लेख उपलब्ध कराया। यह लेख निश्चित रूप से हमारे लिए बहुत उपयोगी होगा।
सादर!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"प्रस्तुति को आपने अनुमोदित किया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय रवि…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
Saturday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service