आदरणीया कल्पना जी के सुझाव के अनुसार रचना में सुधार का प्रयास किया है। कृपया आप सुधी जन इसे एक बार फिर देखने का कष्ट करें।
2122, 2122, 2122, 212
चांदनी भी धूप जैसी रात भर चुभती रही
याद जलती सी शमा बन देह में घुलती रही
सह रहे थे तीर कितने वक्त से लड़ते हुए
भावना तो संग मेरे मौन बस तकती रही
ये सुबह भी रात का आभास देती है मुझे
इन उजालों में अंधेरे की लहर दिखती रही
दर-ब-दर हो हम तुम्हारे प्यार को ढूंढा किए
प्रेम की इक ओढ़ चादर वासना फिरती रही
आंख ने तो अब सपन ही देखना चाहा नहीं
नींद ये फिर भी मुझे बदनाम ही करती रही
खोजता मैं फिर रहा हूं मस्तियां वो गांव की
भीड़ अब इस शहर की हर पल मुझे छलती रही
छेड़ दी ज्यों ही हवा ने पंखुड़ी गीली ज़रा
देर तक इन डालियों से ओस सी झरती रही
- बृजेश नीरज
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
कल्पना जी,
बृजेश जी,
रदीफ़ के दोष पर एक नया लेख ग़ज़ल की बातें समूह में लगाया गया है, कृपया उसे देख लें तो शायद तकाबुले रदीफ़ सहित कुछ अन्य बातें स्पष्ट हो जाएँ
लिंक - क्रम १० - ग़ज़ल : दोष व निराकरण (भाग १)
इता दोष काफ़िया के दोष के अंतर्गत आता है, अतः उस पर अगले हफ्ते लेख लगाया जायेगा
सादर
आदरणीया कल्पना जी मुझे भी आश्चर्य हुआ था कि ऐसा कैसे हो सकता है कि आपको इसके बारे में न मालूम हो।
आपने कुंवर बेचैन जी की किताब के आधार पर जो बात कही है वह यहां चर्चा का विषय हो सकती है।
सादर!
बृजेश जी, इस दोष के बारे में मैं जानती हूँ, नाम नहीं मालूम था। उर्दू के कारण अटक जाती हूँ। लेकिन मैंने प्रसिद्ध शायर कुँवर बेचैन जी की किताब 'गजल का व्याकरण' में पढ़ा है कि यह दोष अब नहीं माना जाता, उर्दू वालों ने भी इसे मान्यता दे दी है।मैं तो इस तरह की अनेक गज़लें लिख चुकी हूँ। फिर यहाँ....
हा हा हा.. . जय हो.. .
आदरणीय सौरभ जी मैं आपका इशारा समझ रहा था लेकिन एडमिन साहब को बार बार कष्ट नहीं देना चाह रहा था।
//खोजता मैं फिर रहा हूं मस्तियां वो गांव की...इसे इस तरह किया जा सकता है खोजता मैं फिर रहा हूं, गांव की वो मस्तियाँ //
मेरा बार-बार का इशारा भइया समझ ही नहीं रहे थे.
अब दखिये इससे मिसरे में तक़ाबुले रदीफ़ की जो दषपूर्ण संभावना बनी थी, खत्म हो गयी.
सादर
आदरणीया कल्पना दीदी,
आदरणीय सौरभ जी से इता दोष के संबंध में मुझे जो जानकारी प्राप्त हुई है वह आपसे साझा कर रहा हूं।
//मोटा-मोटी यों समझिये -
किसी शब्द का काफ़िया ऐसे बनाइये कि जो अक्षर या मात्रा कॉमन हो उसे हटा लेने से शब्द के बचे भाग का कोई सार्थक अर्थ न निकले. अन्यथा इता दोष माना जाता है.
आपकी ग़ज़ल का जो काफ़िया है उससे कॉमन मात्रिक अक्षर (ती) को निकाल लीजिये तो शब्द का बचा अक्षर क्या है. वह अर्थवान कोई शब्द है.//
आदरणीया कल्पना जी आपका हार्दिक आभार! आपकी सहायता से ही यह रूप संभव हुआ। आप द्वारा सुझाया गया संशोधन भी उपयुक्त है।
सादर!
वीनस जी, यह 'बड़ी इता' का दोष क्या होता है, कृपया स्पष्ट करके बताएँ
साभार
बृजेश जी, अब तो बहुत सुंदर हो गई आपकी गजल, बस इस पंक्ति को और ठीक कर दीजिये
खोजता मैं फिर रहा हूं मस्तियां वो गांव की...इसे इस तरह किया जा सकता है
खोजता मैं फिर रहा हूं, गांव की वो मस्तियाँ।...
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