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ग़ज़ल - "सितारे देखिये जब शब सियाह हो जाए"

बह्रे मुज़ारे मुसम्मन मुरक़्क़ब मक़्बूज़ मख़्बून महज़ूफ़ो मक़्तुअ


1212/ 1122/ 1212/ 22
***********************
हमें अज़ीज़ मुजद्दिद की राह हो जाए;
नज़र में शैख़ की गर हो गुनाह हो जाए; ॥1॥

.
मेरे कलाम पे उनको यक़ीन था इतना,
ज़बाँ तराश के बोले सलाह हो जाए; ॥2॥

.
मेरे ख़ुदा तू सदाक़त नवाज़ यूँ मुझको,
जो मुद्दई हो मेरा ख़ैरख़ाह हो जाए; ॥3॥

.
कभी तो ज़ीस्त में अपनी भी पल वो आए जब,
तेरे करम का मेरा दिल गवाह हो जाए; ॥4॥

.
ज़िया ज़रूरी है आलम ये देखने को मगर,
सितारे देखिये जब शब सियाह हो जाए; ॥5॥

.
रवायतों से ही शाइस्तगी मिले लेकिन,
हुए हैं ग़र्बी तो कैसे निबाह हो जाए; ॥6॥

.
मना नहीं है रखो मेल-जोल सबसे मगर,
ज़रा हमारी तरफ़ भी निगाह हो जाए; ॥7॥

.
वह्ब चाहिए इसके सिवा मुझे कोई,
सग़ीरो ख़ास के दिल में पनाह हो जाए; ॥8॥

.
सुख़नसरा नहीं ग़ालिब या मीर सा वाहिद,
ख़ुदा का फ़ज़्ल ग़ज़ल गाह-गाह हो जाए; ॥9॥
***********************
वाहिद काशीवासी
{16052013}

====================================================================================

मुजद्दिद=इस्लाम धर्म का सुधारक; सदाक़त=सत्यनिष्ठता; ख़ैरख़ाह=शुभचिंतक; ज़िया=प्रकाश; शाइस्तगी=संस्कार; ग़र्बी=पाश्चात्य; वह्ब=पुरस्कार; सग़ीरो ख़ास= आम एवं विशिष्ट जन; सुख़नसरा=तरन्नुम में शे'र कहने वाला; गाह-गाह=यदा-कदा;

====================================================================================

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on June 5, 2013 at 8:33pm

आदरणीय अग्रज अरुण जी,

आपसे तो बहुत कुछ सीखने को मिला है! विनम्रता जिसमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण है! :-) बस फ़ज़्ल ही है ख़ुदा का जो ग़ज़ल हो गई!  कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ! सादर,

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on June 5, 2013 at 8:31pm

आद. डॉ. साहिब,

आपने सराहा, उत्साहवर्धन किया हार्दिक आभारी हूँ!

Comment by MAHIMA SHREE on June 4, 2013 at 8:44pm

नमस्कार वाहिद जी .

बेहद गंभीर गज़ल .. कई बार पढ़ा .. बधाई स्वीकार करें  

Comment by Abid ali mansoori on June 4, 2013 at 7:36pm
बेहद उम्दा ग़ज़ल है भाई आपकी बधाई भी स्वीकार करेँ!
Comment by ram shiromani pathak on June 4, 2013 at 6:47pm

वाह संदीप भाई बहुत सुन्दर लाजवाब ...बधाई स्वीकार करें

Comment by Shyam Narain Verma on June 4, 2013 at 5:49pm
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ………………
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on June 4, 2013 at 4:49pm

वाह वाह वाह संदीप भाई लाजवाब 

एक एक अशआर ग़ज़ब का हुआ हर अशआर पर ढेरों दाद हाजिर हैं 

ख़ास इस शेर पर 

मेरे ख़ुदा तू सदाक़त नवाज़ यूँ मुझको, 
जो मुद्दई हो मेरा ख़ैरख़ाह हो जाए; ॥3॥ वाह वाह साहब वाह लाजवाब 

Comment by विजय मिश्र on June 4, 2013 at 4:32pm
"मना नहीं है रखो मेल-जोल सबसे मगर,
ज़रा हमारी तरफ़ भी निगाह हो जाए; ॥7॥"

बेमुरौवती को तंज कसती ये लाइन बेहिसाब पसंद आई ,वैसे तो हर मिसरा ही मिश्री में घुला है .दाद कुबूल करें संदीप भाई .
Comment by Abhinav Arun on June 4, 2013 at 2:59pm

सुख़नसरा नहीं ग़ालिब या मीर सा वाहिद,
ख़ुदा का फ़ज़्ल ग़ज़ल गाह-गाह हो जाए; ॥

हो गयी , हो गयी ..कमाल की ग़ज़ल श्री वाहिद जी बहुत बहुत बधाई हर शेर जिंदाबाद तराशा हुआ नगीने सा !!!

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 4, 2013 at 1:54pm

बहुत उम्दा ग़ज़ल काही है संदीप भाई। पूरी पकी हुई ग़ज़ल। हर एक शेर मशाल्लाह बहुत खूब सूरत ! दिली दाद कुबूल करें! 

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