हार जीत का खेल अजब है , यारों निराश ना होना | |
मेहनत से कभी ना डरना , देखो साहस ना खोना | |
बिना पसीना खेती ना हो , फिर बदले मौसम का रोना | |
बिना पसीना खेती ना हो , खराब मौसम का रोना | |
अगर हाथ पाँव ना चलाओ , भूखे ही पडेगा सोना | |
भाग्य सहारे सोच रहोगे , अपने ही पछताओगे | |
बबूल का जब झाड लगाया , आम कहाँ से पाओगे | |
नदी में तैरना ना आये , पार कहाँ से जाओगे | |
खेत में कुछ बोया ही नही , फसल देख पछताओगे | |
कोई पौधा अगर लगाया , कोई पशु चर सकता है | |
कब तक रहो वर्षा सहारे , जल की आवश्यकता है | |
काम आसान हो जाता है , जब कोई कर सकता है | |
दिन पर दिन टाला ही जाये , फिर पहाड़ सा लगता है | |
मंजिल की अगर जब चाह हो , मेहनत लगन जरूरी है | |
जब चाह हो पर लगन ना हो , दूर मंजिल अधूरी है | |
सब को मंजिल की चाहत है , पर मिलना मजबूरी है | |
वर्मा बिना मेहनत के भैया , देख ! इच्छा ना पूरी है | |
श्याम नारायण वर्मा |
(मौलिक व अप्रकाशित) |
Comment
भावाभिव्यक्ति हेतु बधाइयाँ, श्याम नारायण जी.
इस भाव-भिव्यक्ति को और सुगढ़ रचना करने का प्रयास उचित होगा. आपकी कई रचनाएँ मंच पर प्रस्तुत हो चुकी हैं. आप रचनाकर्म के प्रति सचेष्ठ हों.
शुभेच्छाएँ
आदरणीय आपका प्रयास अच्छा है। आपको बधाई!
रचना पोस्ट करते समय यदि विधा का उल्लेख कर दिया करें तो पाठक के लिए अच्छा होगा।
सादर!
श्याम नारायण जी सुन्दर भावों को संजोये हुए अद्भुत रचना के लिए बहुत बधाई किन्तु अनेक शैल्पिक त्रुटियाँ हैं किसी वरिष्ठ को रचना लिख कर दिखा लिया जाना अपेक्षित है
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