दोस्तो, एक और ग़ज़ल जो होते होते मुकम्मल हुई है, आपकी खिदमत में पेश कर रहा हूँ जैसी लगे वैसे नवाजें ....
ऐ दोस्त ! खुशतरीन वो मंज़र कहाँ गए
हाथों में फूल हैं तो वो पत्थर कहाँ गए
डरता हूँ मुझसे आज के बच्चे न पूछ लें
तितली कहाँ गईं हैं, कबूतर कहाँ गए
पुल जब से बन गया है नदी बेकरार है
बस्ती से नाखुदाओं के सब घर कहाँ गये
बातें तो हमसे करते थे दुनिया जहान की
जब वक्त आ गया तो वो तेवर कहाँ गये
दुनिया को जीत कर भी अलग क्या मिला उन्हें
सबको पता है मर के सिकंदर कहाँ गये
मंचों पे चुटकुलों से हुए हिट मुशाइरे
ग़ज़लें कहाँ गईं वो सुखनवर कहाँ गये
- वीनस
@ २०११
मौलिक व अप्रकाशित
२२१ / २१२१ / १२२१ / २१२
Comment
डॉ आशुतोष जी
आपका हार्दिक आभार
जितेन्द्र पस्तारिया जी आपकी नवाजिश है, नज़रे इनायत के लिए शुक्रगुजार हूँ
आबिद भाई ग़ज़ल आपको पसंद आई जान कर बेहद खुशी हुई
आपका आभारी हूँ
आपके तब और अब के गठन को स्वयं में समेटे यह ग़ज़ल किसी उस चित्र की तरह सामने आयी प्रतीत होती है जिसपर चितेरे के रंग-कर्म के गठन को महसूस किया जा सकता है. ओबीओ पर इस ग़ज़ल को साझा करना इस मंच के व्यवहार के अनुरूप है.
पुल वाला और बच्चे-तितली वाला तो कमाल के शेर हुए हैं. और सिकंदर वाला शेर तो झनझना देता है.
दिल से दाद कुबूल करें.. .
लाजवाब! आपकी रचनायें हम लोगों के लिए सीखने का एक सुगम माध्यम होती हैं। आपको ढेरों बधाई!
डरता हूँ मुझसे आज के बच्चे न पूछ लें
तितली कहाँ गईं हैं, कबूतर कहाँ गए ....
वाकई में आनेवाली पीढियां तितलियाँ , गौरैया, कबूतर सिर्फ किताबों में ही पढ़ पायेंगे ....
हर शेर लाजवाब .... बहुत -२ बधाई आपको
वीनस जी , ला.....जवाब माँग रहा हर गजल .....बहुत ही उम्दा .....डरता हूँ मुझसे आज के बच्चे न पूछ लें
तितली कहाँ गईं हैं, कबूतर कहाँ गए........./दुनिया को जीत कर भी अलग क्या मिला उन्हें
सबको पता है मर के सिकंदर कहाँ गये.........एक सच्चाई जो अक्सर नकारे जाते हैं मगर कब तक....?
सादर
कुंती
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ……………… |
क्या बात है वीनस केसरी जी .. हर अश्'आर खुद में लाजवाब लगा .. कहीं तंज तो कहीं दर्द से लबरेज .. बेहद उम्दा ! दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें |
आदरणीय वीनस जी,
वाकई हैरानी की बात है..गुनाहगारों की भीड़ में एक बेगुनाह का सवाल कि "हाथों में फूल हैं तो वो पत्थर कहाँ गए".. बहुत उम्दा पेशकश. मुबारकवाद कबूल करें. और आखिरी चोट भी जबरदस्त हुई है. हर शेर वाकई ग़ज़ल की जान है.
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