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ऐ दोस्त ! खुशतरीन वो मंज़र कहाँ गए

दोस्तो, एक और ग़ज़ल जो होते होते मुकम्मल हुई है, आपकी खिदमत में पेश कर रहा हूँ जैसी लगे वैसे नवाजें   ....

ऐ दोस्त ! खुशतरीन वो मंज़र कहाँ गए
हाथों में फूल हैं तो वो पत्थर कहाँ गए

डरता हूँ मुझसे आज के बच्चे न पूछ लें
तितली कहाँ गईं हैं, कबूतर कहाँ गए

पुल जब से बन गया है नदी बेकरार है
बस्ती से नाखुदाओं के सब घर कहाँ गये

बातें तो हमसे करते थे दुनिया जहान की
जब वक्त आ गया तो वो तेवर कहाँ गये

दुनिया को जीत कर भी अलग क्या मिला उन्हें
सबको पता है मर के सिकंदर कहाँ गये

मंचों पे चुटकुलों से हुए हिट मुशाइरे
ग़ज़लें कहाँ गईं वो सुखनवर कहाँ गये


- वीनस
@ २०११
मौलिक व अप्रकाशित
२२१ / २१२१ / १२२१ / २१२

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Comment by विजय मिश्र on June 6, 2013 at 10:25am
"पुल जब से बन गया है नदी बेकरार है
बस्ती से नाखुदाओं के सब घर कहाँ गये "

-- समुची गजल बहुत सुन्दर है और यह बिम्ब तो मन को छू जाता है .बधाई .
Comment by Dr Ashutosh Vajpeyee on June 6, 2013 at 9:51am

 बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही अपने बन्धु.........सादर बधाई 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 6, 2013 at 9:38am
आदरणीय वीनस जी, बहुत शानदार गजल, तहे दिल से बधाई कुबूल कीजीऐ.."पुल जब से बन गया है नदी बेकरार है, बस्ती से नाखुदाओं के सब घर कहाँ गये "..दुनिया को जीत कर भी अलग क्या मिला उन्हे, सबको पता है मर के सिकंदर कहाँ गये.." बेहतरीन गजल, क्या अंदाज है आपका आदरणीय वीनस जी...."हार्दिक शुभकामनाऐं "
Comment by Abid ali mansoori on June 6, 2013 at 9:38am
वाह!हर एक शेर ग़ज़ल की जान बन गया है,बधाई आदरणीय वीनस जी!

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