गाँव बदले हुए हैं ,शहर हो गए ,
स्वार्थ की आत्म-केंद्रित नहर हो गए,
सूर्य में थीं यहीं नेह की रश्मियाँ
रिश्ते सब गर्म अब दोपहर हो गए !
*
आओ मिलकर मोड दें पन्ने किताब के ,
और ढूँढें फूल कुछ सूखे गुलाब के ,
सकपकाई उम्र ,वो बारिश सवालों की
खूबसूरत झूठ ,वो किस्से जवाब के !
*
दर्द को खूब लिखा ,
गहरे जा डूब लिखा ,
पाँव जब जलने लगे
पथ को हरी दूब लिखा !
*
रूप की एक नदी बहती है,,
खूबसूरत ए हंसी लगती है,
फूल,घाटी ,पहाड़ ये झरने
कोई तस्वीर सजी लगती है !
________________प्रो.विश्वम्भर शुक्ल ,लखनऊ
(मौलिक और अप्रकाशित रचना)
Comment
आपके इस प्रयास पर मेरी ढेरों बधाई!
रचनाओं का संज्ञान लेने और सराहना की दृष्टि का हार्दिक आभार ------श्याम नारायण वर्मा जी,प्रज्ञा श्रीवास्तव जी ,डी.पी. माथुर जी ,अमन कुमार जी ,जवाहर लाल सिंह जी ,यतीन्द्र पाण्डेय जी !
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ. |
अति सुंदर
दर्द को खूब लिखा ,
गहरे जा डूब लिखा,
पाँव जब जलने लगे
पथ को हरी दूब लिखा !
बहुत गहराई से सरोबार पंक्तिया , बधाई ,बहुत अच्छी रचना !!!
डी पी माथुर
उम्र के हर मोड़ पर यादे हमें अपनी भावनायो से ही भिगो देती है !
बहुत ही सुंदर!
HAILO SIR
BEHTRIN RACHNA DIL MAI BAS GAYI
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