For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ज़िंदगी इतने दिन तूफ़ान रही,

कभी बारिश,कभी मुस्कान रही 

मिर्च थी खूब,मसाले भी बहुत

सौदा-सुलुफ की ये दुकान रही 

लोग चेहरे लगाये ,आये ,गए 
कौन रिश्ते थे बस पहचान रही 

आसमां पर निरी सलाखें थीं 

अपनी आँगन में ही उड़ान रही 

खूब ढोया है उम्र को हमने 
इसलिए दोस्त,कुछ थकान रही 
____________प्रो.विश्वम्भर शुक्ल 
लखनऊ 

(अप्रकाशित और मौलिक रचना )

Views: 562

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वीनस केसरी on June 19, 2013 at 9:59am

प्रो साहब सुन्दर गीतिका के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें 

हाँ 
कभी बारिश,कभी मुस्कान रही ...

मुस्कान के साथ बारिश का कंट्रास्ट नहीं आ पा रहा है
इस पर गौर करें 

Comment by vijayashree on June 14, 2013 at 8:53pm

खूब ढोया है उम्र को हमने 
इसलिए दोस्त,कुछ थकान रही 

 

सुंदर प्रस्तुति .... हार्दिक बधाई

Comment by coontee mukerji on June 14, 2013 at 1:16am

बहुत गम्भीर रचना / सादर / कुन्ती

Comment by डा॰ सुरेन्द्र कुमार वर्मा on June 13, 2013 at 7:32pm

बहुत सुन्दर रचना, बधाई! पढ़ते हुए कुछ ऐसा भी लगा (क्षमा सहित... ):

      "लोग चेहरे लगाये ,आये ,गए, कौन रिश्ते थे बस पहचान रही 
       खूब ढोया है उन को हमने
 इसलिए दोस्त,कुछ थकान रही" . (ये सुझाव नहीं, मेरी प्रतीति है जो पढ़ते हुए मुझे हुई)

Comment by बृजेश नीरज on June 12, 2013 at 10:19pm

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति! आपको ढेरों बधाई!

Comment by विजय मिश्र on June 12, 2013 at 6:14pm

" आसमां पर निरी सलाखें थीं 

अपनी आँगन में ही उड़ान रही "--- उठा-पटक के बीच यह सीमांकन भा जाता है . बधाई .

Comment by राजेश 'मृदु' on June 11, 2013 at 6:15pm

वाह-वाह आदरणीय बहुत ही बढि़या । इस मंच पर आपकी प्रथम रचना पढ़ रहा हूं पर अन्‍यत्र आपका लिखा बहुत कुछ पढ़ा है, एक-दो अपने मशहूर ठुक्‍तक भी दें तो आनंद आ जाए, सादर

Comment by Shyam Narain Verma on June 11, 2013 at 4:55pm

सुदर अभिव्यक्ति............................

Comment by वीनस केसरी on June 11, 2013 at 11:33am

सुन्दर प्रस्तुति 

हार्दिक आभार एवं शुभकामनाएं 

Comment by Abid ali mansoori on June 11, 2013 at 11:25am
वाह..विश्वम्भर जी एक अजीब सी कशिश है आपकी रचना मेँ जो दिल मेँ उतर गई!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

ajay sharma shared a profile on Facebook
14 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service