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पेड़ पर बैठी चिड़िया बोली

ओ जंगल के राजा

मानव कितना अभिमानी है

इसको तू खाजा

स्वार्थ में आकर छीन रहा था

मेरा घर वो आज

बच्चे मेरे बिलख रहे थे

कैसी गिरी ये गाज

ना जाने क्या सोच कर उसने

ये पेड़ आज नही काटा

पेड़ भी बोला गुस्से से

मारूंगा एक चांटा

छाया देता ,फल भी देता

और आसरा सबको

फिर भला ये मानव

काट रहा क्यों मुझको

सुन कर सारी बातें

शेर जोर से दहाड़ा

आने दो  कल मानव को

पढ़ाऐगे नैतिकता का पहाड़ा

कहेंगे

खुद जियो प्रकृति को भी जीने दो

मत छीनो किसी का तुम आसरा

तुम्हे तुम्हारी मानवता का वास्ता

 

 

 

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Abid ali mansoori on June 13, 2013 at 1:19pm
''खुद जियो प्रकृति को भी जीने दो''
वाह बहुत सुन्दर,..बधाई स्वीकार करेँ प्रज्ञा जी!
Comment by Pragya Srivastava on June 13, 2013 at 12:45pm

धन्यवाद...........बृजेश नीरज जी

Comment by Pragya Srivastava on June 13, 2013 at 12:44pm

विजय मिश्र जी,धन्यवाद,

Comment by विजय मिश्र on June 12, 2013 at 5:57pm

शेर की भाषा ने प्रभावित किया और निज स्वार्थ में लिप्त मानव द्वारा प्रकृति का उछाह्न तो चिंता का विषय है ही .साधुवाद प्रज्ञाजी .

Comment by बृजेश नीरज on June 12, 2013 at 7:50am

भाव बहुत सुन्दर हैं। अच्छा प्रयास है! बधाई आपको!

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