भक्ति में शक्ति है1 ईश्वर की भक्ति जीवन का अंतिम लक्ष्य है1 योग साधना है1योग हो या भक्ति दोनों ईश्वर तक पहुँचने का माध्यम हैं1योग हमारे शरीर, मन –मस्तिष्क को स्वस्थ रखता है और इस साधना के बगैर भक्ति संभव नही1 हम बहुत सौभाग्यशाली हैं कि हमें मनुष्य जीवन मिला1 हम जन्म से लेकर मृत्यु तक सांसारिक बंधनों में लिप्त रहतें हैं1 बल्कि हमारा उदेश्य तो सांसारिकता को छोड़कर ईश्वरीय अराधनाओं में होना चाहिए वही तो सच्चा ज्ञान है1जब तक हम शिक्षित नही होंगे पहचानेगें कैसे कि सच क्या है? हमें इस जीवन का सच्चा अर्थ खोजना है उस पर चिंतन करना है मनन करना है1 ये शरीर तो नश्वर है1 हमें अपनी सोच सकारात्मक रखनी होगी1 तभी तो हम बाधाओं से लोहा ले सकेंगे1 युवावस्था मनुष्यका प्रगति काल है निरंतर प्रगति करना जबकि बुढ़ापा समाप्ति काल1 इस बुढ़ापे को निश्चित बनाने के लिए हमें विचार करना होगा1 आत्मा जब तक शरीर में निवास करती है तब तक हमें अपने कर्मों के द्वारा मनुष्य होने का प्रमाण देना होगा1 निश्चय ही हमने भौतिकता की दौड़ में तरक्कि पा ली है पर हम वास्तव में कितने पिछड़ते जा रहे हैं पर जो परम सुख है आत्मिक सुख उसकी और हमारा ध्यान ही नही जाता1 दिन और रात की भाँति ही हमारा सूर्य उदय हुआ है तो अस्त भी होगा1 जन्म लिया तो मरण भी होगा1 क्यों न हम अपने इस जीवन को सार्थकता दें1 हम इस बात को समझें की युवावस्था की बुरी आदतें हमारे बुढ़ापे को बर्बाद कर देंगी1 हमें तो कुछ ऐसा करना चाहिए कि अपने लिए ही नही अपनी आने वाली पीढ़ी को विरासत में देकर जाएँ1 वसुधैव कुटुम्बकम की भावना के साथ जिए1 समाज के उत्थान में योगदान दें1 वर्तमान की अच्छाइयाँ ही भविष्य को सुरक्षित रख पाएँगी1 प्रेम करें खुद से ही नही इस प्रकृति से भी1 प्रेम की परिभाषा को समझें1 परमेश्वर ने हमें प्रकृति की देखभाल का कार्य सौंपा है हम अपने कर्मों से इसे नुकसान ना पहुँचाएँ1 वरना परम पिता परमात्मा ने प्रकृति का जो सुंदर उपहार दिया है कहीं वही उपहार हमसे रूष्ट ना हो जाए1 प्रकृति भी ईश्वर के विभिन्न रूपों में से एक है1 इससिए हमारा कर्तव्य बनता है कि हम इस अनमोल उपहार की परवाह करें1ये परम सत्य है कि हम आए हैं तो हमें जाना भी होगा पर जाने से पहले ऐसा कुछ कर जाना होगा कि मरने के बाद भी हम महकते रहें1 प्रेरित करें खुद को भी और दूसरों को भी1 बने हरियाली के दूत1 राधा और कृष्ण से निश्चल प्रेम की तरह प्रेमी बनें प्रकृति के, उसकी भक्ति करें1 उसकी साधना करें1जरूर लगाएँ एक नन्हा पौधा, उसे सींचे, पालें-पोषें अपने बच्चों की तरह पालें, ताकि बड़ा होकर वे हमारे सच्चे प्रेमी होने का प्रमाण दें1
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
विकाश के नाम पर पलायन और प्रक्रति विनाश ही तो हुआ है|
फिर प्रक्रति तो जीवन का अभिबज्ये अंग है |
विषय का चयन के लिए विशेष बधाई !
HAILO MAM
SUNDAR KRITI
AABHAR SWEKARE
YATINDRA
बढ़ते शहरो में खोटी हरियाली के देखते हुए एक पौधा लगाने सींचने और बच्चों की तरह पालने पोषने के सुन्दर सन्देश के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारे, आज इसकी महती आवश्यकता है | इसका सब अनुसरण करे तो बात बने
सुन्दर
सुन्दर और अनुकरणीय पोस्ट. बधाई प्रज्ञा जी.
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