For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

 

आज बढ़ सकते हैं दाम

हाय राम, आम तो आम

बढ़ सकते हैं गुठलियों के भी दाम

ये महँगाई सुरसा के मुहँ की तरह

बढ़ती ही जा रही है

अपनी हरकतों से बाज नही आ रही है

सरकारी नीति यही समझा रही है

जनसंख्या वृद्धि को रोकने मे

महँगाई बहुत बढ़ी भूमिका निभा रही है

भूखे मरेंगे लोग

तरसेगें पीने के लिए जल

आज नही तो कल

जनसंख्या वृद्धि जैसी समस्या का

अपने आप निकल जाएगा हल

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 509

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 8, 2013 at 10:09am

अच्छा प्रयास, करत करत अभ्यास के -------बधाई 

Comment by वेदिका on June 7, 2013 at 6:51pm
स्नेही प्रज्ञा जी! 
आप में अच्छे लेखन की सम्भावनाये है। अतुकांत भी लिखे तो उसके नियम के अनुरूप लिखने से आपकी रचना में  प्रभाव-उत्पादकता बढ़ेगी। 
आप जिस मंच पर है वहाँ अतुकांत शैली के ज्ञाता आदरणीय सौरभ जी है। उनसे मार्ग दर्शन लीजिये। 
सादर!     
Comment by Pragya Srivastava on June 7, 2013 at 6:30pm

गीतिका वेदिका जी आपके विचारों का आदर करतीहूँ

Comment by वेदिका on June 7, 2013 at 3:08pm
सुंदर भाव पिरोये गये है ...किन्तु समझ नही आ रहा की किस शैली में रचना है?
पंक्ति के दुहराव से बचें, 
तारतम्यता भंग न होने पाए पाठक की, रचना पढ़ते समय। 
सादर!    
Comment by बृजेश नीरज on June 7, 2013 at 2:59pm

इस गद्य को आपने कविता की तरह क्यों पोस्ट किया है?
मुझे यदि मार्गदर्शन दे सकें तो आपकी बहुत कृपा होगी।
सादर!

Comment by ram shiromani pathak on June 7, 2013 at 2:42pm

प्रज्ञा जी बहुत सुन्दर बधाई स्वीकार करें////टीवी पर ऐड देखता हूँ  कंपनी वाले बिन मौसम भी आम देने का दावा करते है ///शायद उसमे गुठलियाँ नहीं होती ///हा हा हा हा 

Comment by Pragya Srivastava on June 7, 2013 at 11:54am

धन्यवाद

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 7, 2013 at 11:52am
आदरणीया...सचमुच मंहगाई ने कमर तोड़ के रख दी है! बहुत खूब लिखा आपने इस बड़ी समस्या को, कम ही पंक्तियों में...हार्दिक शुभकामनाऐं स्वीकार करें...
Comment by Shyam Narain Verma on June 7, 2013 at 10:16am
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ………………
Comment by रविकर on June 7, 2013 at 10:04am

बढ़िया-

आभार आदरेया-

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"आदरणीय नीलेश भाई,  आपकी इस प्रस्तुति के भी शेर अत्यंत प्रभावी बन पड़े हैं. हार्दिक बधाइयाँ…"
15 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"साथियों से मिले सुझावों के मद्दे-नज़र ग़ज़ल में परिवर्तन किया है। कृपया देखिएगा।  बड़े अनोखे…"
16 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. अजय जी ...जिस्म और रूह के सम्बन्ध में रूह को किसलिए तैयार किया जाता है यह ज़रा सा फ़लसफ़ा…"
16 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"मुशायरे की ही भाँति अच्छी ग़ज़ल हुई है भाई नीलेश जी। मतला बहुत अच्छा लगा। अन्य शेर भी शानदार हुए…"
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post उस मुसाफिर के पाँव मत बाँधो - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति के लिए धन्यवाद और बधाइयाँ.  वैसे, कुछ मिसरों को लेकर…"
17 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"हार्दिक आभार आदरणीय रवि शुक्ला जी। आपकी और नीलेश जी की बातों का संज्ञान लेकर ग़ज़ल में सुधार का…"
17 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"ग़ज़ल पर आने और अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए आभार भाई नीलेश जी"
17 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)
"अपने प्रेरक शब्दों से उत्साहवर्धन करने के लिए आभार आदरणीय सौरभ जी। आप ने न केवल समालोचनात्मक…"
17 hours ago
Jaihind Raipuri is now a member of Open Books Online
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ashok Kumar Raktale's blog post ठहरा यह जीवन
"आदरणीय अशोक भाईजी,आपकी गीत-प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाइयाँ  एक एकाकी-जीवन का बहुत ही मार्मिक…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. रवि जी "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"स्वागत है आ. रवि जी "
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service