सिसकियाँ भरते रहे हम रात भर
चाँद ने भी देखा पर कुछ ना कहा
हवाएँ भी सुनकर चलती रही
दर्द सीने में लहरों सा उठता रहा
चाँदनी बादलों में छुपने लगी
सांस भी रह-रह कर रूकने लगी
सिर्फ बची मैं और मेरी तन्हाईयाँ
यादें करती रही पीछा बनकर परछाइयाँ
घटाओं ने समझा दर्द बस मेरा
बरसती रही वो रात भर
जख्म रिस-रिस कर ऐसे बहने लगे
घाव मरहम की ख्वाहिश में सहने लगे
पिघलकर रूह बिछने लगी
साया भी खुद से सहमने लगा
लौ जलती रही मगर तेल कम था
एक…
Added by Pragya Srivastava on June 18, 2014 at 5:30pm — 9 Comments
Added by Pragya Srivastava on May 10, 2014 at 7:32pm — 5 Comments
Added by Pragya Srivastava on April 14, 2014 at 1:27pm — 12 Comments
Added by Pragya Srivastava on April 11, 2014 at 11:51pm — 10 Comments
Added by Pragya Srivastava on March 14, 2014 at 10:56pm — 2 Comments
मजदूर हूँ मैं किसान हूँ
सबके करीब सबसे दूर हूँ
तपती लू के थपेड़ों ने
झुलसाया मुझे बहुत
अनवरत करता रहा भूख प्यास से व्याकुल
होकर भी अपना काम
कभी पाला कभी कोहरा प्रकति…
ContinueAdded by Pragya Srivastava on February 4, 2014 at 11:00pm — 5 Comments
भारत तुझे नमन
जब-जब देखा यहाँ है पाया
एक अनोखा रंग
भारत तुझे नमन
कण-कण मे यहाँ प्यार है बसता
देखो कितनी है समरसता
चाहे हिंदू, चाहे…
ContinueAdded by Pragya Srivastava on January 13, 2014 at 10:30pm — 9 Comments
अलादीन का चिराग हूँ मैं
एक हसीन ख्वाब हूँ मैं
मचलती सुबह हूँ मैं
खिलखिलाती शाम हूँ मैं
हँसी का अंदाज हूँ मैं
प्रीत हूँ प्यार हूँ मैं
पहचान मेरी मुझसे है
दो कुलों की शान हूँ मैं
दायरों मे बंधी हूँ मैं
शर्म से सजी हूँ मैं
छाया हूँ बाबुल के आंगन की
पिया की परछाई हूँ मैं
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Pragya Srivastava on July 15, 2013 at 8:00pm — 11 Comments
उन शहीदों को मेरा
सलाम है सलाम
जाँ बचाते-बचाते
दे गए अपनी जान
नाज करते हैं हम
उनके जज्बात पर
देश के मान पर
तिरंगे के सम्मान पर
जाँ बचाते रहे
बेखौफ हो निडर
एक जिद थी कि
ज्यादा से ज्याद
बचाते रहें
नेक था इरादा
काम नेक था
विधाता ने लिखा पर
कुछ और लेख था
मौत जीती मगर
हो गए वो अमर
उनको शत-शत नमन
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Pragya Srivastava on July 9, 2013 at 4:30pm — 7 Comments
मंजिल को पाने की चाह में
इस कदर हम खो गए
मंजिल मिली मगर
तन्हा हम हो गए
रास्ते चलते रहे
फांसले बढ़ते गए
छूटते इस साथ को
हमने कभी चाहा था बहुत
वो हमारे थे मगर
अब किसी और के हो गए
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Pragya Srivastava on July 2, 2013 at 5:30pm — 9 Comments
जाने क्यो उदास है
मेरा मन
जाने क्यों निराश है
मेरा मन
जाने क्यों हताश है
मेरा मन
अधरों से फूटते नही बोल
घुटन सी होती है इस मन में
चुभन सी होती है इस तन में
चंचलता से भरा मेरा मन
जाने क्यों उदास है
लगता है ऐसे कोई नही
अपना आस-पास है
अपनों को खोजता ये मन
लिए तड़पन, लिए लगन
आँसूओं की धारा में
गुम-सुम हुआ मेरा मन
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Pragya Srivastava on June 29, 2013 at 11:13am — 15 Comments
वंदना हम कर रहे
माँ शारदे माँ शारदे
अज्ञान के अंधेरों से
तू हमें तार दे
हम तो अज्ञानी हैं
ज्ञान से संवार दे
माँ शारदे------------
.
श्वेत वस्त्र धारणी
कमल पे विराजती
वीणा के तार की
झंकार दे झंकार दे
माँ शारदे----------
.
चरणों में तेरे हम
शीश को झुका रहे
ज्ञान की ज्योति
हमको उपहार दे
माँ शारदे------------
मौलिक व अप्रकाशित------
Added by Pragya Srivastava on June 21, 2013 at 11:00am — 9 Comments
वो आवाज
जो पल भर पहले था कितना खुशहाल
अचानक हुई एक धमाके की आवाज
उस धमाके की आवाज से बंद हुई पलकें
जब खुली तब तक,
खत्म हो चुका था सब कुछ
रह गए थे टूटे हुए बर्तन,
बिखरी हुई चूड़ियाँ, छितराई हुई लाशें,
फैला हुआ खून, ढ़ूढ़ती हुई आँखें,
एक अकेले रोते हुए बच्चे की आवाज
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Pragya Srivastava on June 20, 2013 at 12:34am — 9 Comments
घटाएँ काली-काली हैं
शायद बरसने वाली हैं
वन उपवन हैं प्यासे कब से
तरस रहे हैं पानी बरसे
खेतों और खलिहानों को
मजदूर और किसानों को
आस जगी है अब तो बरसें
बरसों बीत गए हैं बरसे
बरसे तो सबका मन हर्षे
तपन मिटे इस धरती की
हरियाली की चादर फैले
मोर पपीहों का दिल बहले
नाचे लोग घर उपवन में
नव जीवन का संचार हो मन मे
खिलें फूल मुस्काए हर मन
उमड़-घुमड़ कर बरसो…
ContinueAdded by Pragya Srivastava on June 17, 2013 at 4:47pm — 16 Comments
आशा के सहारे इंसान अपनी सारी उम्र गुजार देता हैI यही कि अब अच्छा होने वाला है अब सब सही हो जाएगा1 मैं सोचती हूँ क्या सचमुच सब सही हो जाएगाIजिंदगी की गाड़ी पटरी पर चलने लगेगी1भगवान देता है माना पर मुझे दिया अस्त-व्यस्त बिखरा हुआI अब उसे समेटना हैI यहाँ संभालो तो वहाँ की चिंता,वहाँ संभालो तो यहाँ की चिंता क्या करूं?पता नही कब सब कुछ सही होगा,होगा की नही1 जीवन के इस करूक्षेत्र में आशा और निराशाके इस महाभारत में कहीं कौरव न जीत जाए1भगवान कृष्ण तुम कहाँ हो? सुनते क्यों नही ?पुकारते-पुकारते थक गई…
ContinueAdded by Pragya Srivastava on June 15, 2013 at 11:41am — 4 Comments
मन की किताब के कुछ पन्ने
तुमको सुनाती हूँ मैं
कहीं पे हैं खुशियाँ खुद को समेटे
और गम हैं देखो चादर में लिपटे
सलवटें हजारों दर्द की पड़ी हैं
आशा की किरण पट खोले खड़ी है
खिड़कियों से उमंगें पवन बन के आती
देखो झरोखों से फिर जा रही हैं
कमरे के कोने में छिपी बैठी चाहत
लाल सुर्ख साड़ी में मुस्कुराहट शरमा रही है
हंसी फूलों में खिलखिला रही…
ContinueAdded by Pragya Srivastava on June 14, 2013 at 8:00pm — 4 Comments
सच एक सवाल हो गया
झूठ का धमाल हो गया
कमाल हो गया, कमाल हो गया
नोट है तो वोट है
हर चीज में खोट है
चोट पर चोट है, चोट पर चोट है
धूप है छाँव है
अनकहे,अनछुए घाव ही घाव हैं
नोचता ,कचौटता मन को मसौसता
राह का पता नही ढ़ूढ़ता फिर रहा
कोई तो बता दे
ये सच कहाँ रहता है
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Pragya Srivastava on June 13, 2013 at 12:33pm — 7 Comments
पेड़ पर बैठी चिड़िया बोली
ओ जंगल के राजा
मानव कितना अभिमानी है
इसको तू खाजा
स्वार्थ में आकर छीन रहा था
मेरा घर वो आज
बच्चे मेरे बिलख रहे थे
कैसी गिरी ये गाज
ना जाने क्या सोच कर उसने
ये पेड़ आज नही काटा
पेड़ भी बोला गुस्से से
मारूंगा एक चांटा
छाया देता ,फल भी देता
और आसरा सबको
फिर भला ये मानव
काट रहा क्यों मुझको
सुन कर सारी बातें
शेर जोर से दहाड़ा
आने दो कल मानव…
ContinueAdded by Pragya Srivastava on June 10, 2013 at 11:04am — 5 Comments
भक्ति में शक्ति है1 ईश्वर की भक्ति जीवन का अंतिम लक्ष्य है1 योग साधना है1योग हो या भक्ति दोनों ईश्वर तक पहुँचने का माध्यम हैं1योग हमारे शरीर, मन –मस्तिष्क को स्वस्थ रखता है और इस साधना के बगैर भक्ति संभव नही1 हम बहुत सौभाग्यशाली हैं कि हमें मनुष्य जीवन मिला1 हम जन्म से लेकर मृत्यु तक सांसारिक बंधनों में लिप्त रहतें हैं1 बल्कि हमारा उदेश्य तो सांसारिकता को छोड़कर ईश्वरीय अराधनाओं में होना चाहिए वही तो सच्चा ज्ञान है1जब तक हम शिक्षित नही होंगे पहचानेगें कैसे कि सच क्या है? हमें इस जीवन का…
ContinueAdded by Pragya Srivastava on June 6, 2013 at 5:35pm — 5 Comments
आज बढ़ सकते हैं दाम
हाय राम, आम तो आम
बढ़ सकते हैं गुठलियों के भी दाम
ये महँगाई सुरसा के मुहँ की तरह
बढ़ती ही जा रही है
अपनी हरकतों से बाज नही आ रही है
सरकारी नीति यही समझा रही है
जनसंख्या वृद्धि को रोकने मे
महँगाई बहुत बढ़ी भूमिका निभा रही है
भूखे मरेंगे लोग
तरसेगें पीने के लिए जल
आज नही तो कल
जनसंख्या वृद्धि जैसी समस्या का
अपने आप निकल जाएगा हल
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Pragya Srivastava on June 6, 2013 at 5:12pm — 12 Comments
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