For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भारत तुझे नमन

 

जब-जब देखा यहाँ है पाया

एक अनोखा रंग

भारत तुझे नमन

कण-कण मे यहाँ प्यार है बसता

देखो कितनी है समरसता

चाहे हिंदू, चाहे मुस्लिम,

चाहे सिक्ख हो, या ईसाई

यहाँ की मिट्टी की खुशबू से

महके सबका मन

भारत तुझे नमन

सरगम के हैं गीत यहाँ

हर मन मे है प्रीत यहाँ

मेहमानों की आवभगत में

हर्षाते हरदम

भारत तुझे नमन!!!!!!!!!! 

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 468

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on January 16, 2014 at 11:12am

सुंदर गीत , हार्दिक  बधाई आ. प्रग्याजी ।

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 16, 2014 at 10:38am

बेहद सुन्दर गीत रचा है आपने पढ़कर अच्छा लगा आपको हार्दिक बधाई.

जय हिन्द जय भारत

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 16, 2014 at 8:20am

यहाँ की मिट्टी की खुशबू से

महके सबका मन

भारत तुझे नमन

सरगम के हैं गीत यहाँ

हर मन मे है प्रीत यहाँ.......बहुत सुंदर भाव, देश की महिमा को बयां करती पंक्तियाँ

बधाई स्वीकारें आदरणीया प्रज्ञा जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 15, 2014 at 11:29pm

भारत देश की शान में बहुत सुन्दर सुमधुर रचना 

जय हिन्द !

सरगम के हैं गीत यहाँ....यह पंक्ति कुछ बदलाव चाहती सी अवश्य लगी.

इस सुन्दर गीत के लिए हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 15, 2014 at 8:23pm

आदरणीय , बहुत सुन्दर भावों से रची आपकी रचना के लिये आपको बधाई ॥ जय हिन्द ॥

Comment by विजय मिश्र on January 15, 2014 at 4:43pm
भारत तुझे नमन
Comment by Meena Pathak on January 14, 2014 at 2:43pm

भारत तुझे नमन !!!!   क्या बात है ,,, बहुत सुन्दर रचना, बधाई 

Comment by Shyam Narain Verma on January 14, 2014 at 12:03pm
बहुत खूबसूरत रचना के लिये आपको बधाई .......................
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 14, 2014 at 11:13am

भारत तुझे नमन -सुन्दर रचना हुई है | 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service