जाने कब मिलेंगे हम अब्बू आपसे...
-----------------------------------------अनवर सुहैल (मौलिक अप्रकाशित और अप्रसारित कविता)
कब मिलेगी फुर्सत
कब मिलेगा मौका
कब बढ़ेंगे कदम
कब मिलेंगे हम अब्बू आपसे...
बेशक, आप खुद्दार हैं
बेशक, आप खुद-मुख्तार हैं
बेशक, आप नहीं देना चाहते तकलीफ
अपने वजूद से,
किसी को भी
बेशक , आप नहीं बनना चाहते
बोझ किसी पर..
तो क्या इसी बिना पर
हम आपको छोड़ दें तनहा!
ये सच है, आप तनहा हैं
ये सच है, आप कमज़ोर हो गए हैं
ये सच है, आपकी नज़रें अब
खोजने लगी हैं अपनों को
और हम फंसे हैं
अपनी उलझनों में
अपनी परेशानियों में
निकाल नहीं पा रहे फुर्सत
जबकि इस बीच हमने की
कई शादियों में शिरकत
कई आफीसियल टूर...
एल एल टी सी लेकर
मज़े लिए दार्जिलिंग में सपरिवार
सपरिवार?
हाँ सपरिवार
क्योंकि परिवार की परिभाषा में
अब माँ-बाप कहाँ आते हैं...?
Comment
परिवार की परिभाषा में
अब माँ-बाप कहाँ आते हैं...?
भावपूर्ण अभिव्यक्ति / सादर
बह्त सुंदर भावना प्रधान रचना / सादर / कुंती
अनवर भाई , आपके साफगोई और एहसासात के इस बयान को सलाम . वख्त निकालिए .
बहुत सुन्दर
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ……………… |
क्योंकि परिवार की परिभाषा में
अब माँ-बाप कहाँ आते हैं...?
विषय का चयन के लिए विशेष बधाई !
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