उनके जीवन में है दुःख ही दुःख
और हम बड़ी आसानी से कह देते
उनको दुःख सहने की आदत है...
वे सुनते अभाव का महा-आख्यान
वे गाते अपूरित आकांक्षाओं के गान
चुपचाप सहते जाते जुल्मो-सितम
और हम बड़ी आसानी से कह देते
अपने जीवन से ये कितने सतुष्ट हैं...
वे नही जानते कि उनकी बेहतरी लिए
उनकी शिक्षा, स्वास्थय और उन्नति के लिए
कितने चिंतित हैं हम और
सरकारी, गैर-सरकारी संगठन
दुनिया भर में हो रहा है अध्ययन
की जा रही हैं पार-देशीय यात्राएं
हो रहे हैं सेमीनार, संगोष्ठिया...
वे नही जान पायेंगे कि उन्हें
मुख्यधारा में लाने के लिए
तथाकथित तौर पर सभ्य बनाने के लिए
कर चुके हजम हम
कितने बिलियन डालर
और एक डालर की कीमत
आज पचपन रुपये है...!
(मौलिक अप्रकाशित और अप्रसारित रचना ) अनवर सुहैल
Comment
आप सभी का आभार व्यक्त करता हूँ कि आपने मेरी कविता के मर्म को बूझकर मुझे सतत सृजन-रत रहने के लिए प्रेरित किया है
जिस गंभीरता से यह रचना व्यंग्य करती है उसका कोई पारावार नहीं है.
जिस दुखद सच्चाई की ओर यह इंगित करती है वह विकास के नाम पर अपनाये गये काइंयाँपन को उजागर करती है.
जिनके लिए जो कुछ हो रहा है उन्हीं को नहीं मालूम कि वे बिम्ब हैं ! और जो ये सब कर रहे हैं उनको मालूम है कि यह बिम्ब ही उनका ज़रिया है. इस ज़रिये को कौन हाथ से जाने देगा भला ? तभी तो रचना में उद्धृत डॉलर के मूल्य में तेज़ी से इज़ाफ़ा हुआ, ताकि उगाही के रुपयों में मूल्य दिखे तो सनद रहे.. .
इस प्रखर सोच को शब्द देने के लिए आपको हार्दिक बधाई अनवर सुहैलजी.. .
सादर
तथाकथित तौर पर सभ्य बनाने के लिए
कर चुके हजम हम
कितने बिलियन डालर
और एक डालर की कीमत
आज पचपन रुपये है...! ..........नितांत सत्य
आपको हार्दिक बधाई!!
आदरनीय अनवर जी ...इस बेहद संजीदगी से लिखी रचना जो यथार्थ के धरातल पर बिलकुल खरी उतरती है के लिए आपको हार्दिक बधाई
वाह! और उस पचपन रूपए में नेताओं के हिसाब से ऐसे लोग डेढ़ दिन का खाना खा सकते हैं। कितना खाना हजम कर गए। हाजमोला लेते होंगे हर कौर के बाद!
मेरी हार्दिक बधाई ऐसी सुंदर रचना के लिए!
आदरणीय अनवर जी, बहुत ही सुन्दर रचना //हार्दिक बधाई//सादर
वे नही जानते कि उनकी बेहतरी लिए
उनकी शिक्षा, स्वास्थय और उन्नति के लिए
कितने चिंतित हैं हम और
सरकारी, गैर-सरकारी संगठन
दुनिया भर में हो रहा है अध्ययन
की जा रही हैं पार-देशीय यात्राएं
हो रहे हैं सेमीनार, संगोष्ठिया...
वे नही जान पायेंगे कि उन्हें
मुख्यधारा में लाने के लिए
तथाकथित तौर पर सभ्य बनाने के लिए
कर चुके हजम हम
कितने बिलियन डालर
और एक डालर की कीमत
आज पचपन रुपये है...!
................सच्चाई बयां करते हुए क्या व्यंग्य मारा है अनवर जी .यह सच है कि एक गरीब आदमी को रूखी सूखी रोटी खाते हुए देख हम कितने आसानी से कह देते हैं कि वह कितना सुखी है ......लेकिन कोई तो उन से पूछे...? सादर / कुंती
आदरणीय , |
बहुत ही समसामयिक और शानदार प्रस्तुति। हार्दिक बधाई स्वीकारें।
शानदार प्रस्तुति। हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,
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