For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दुःख सहने के अभ्यस्त

उनके जीवन में है दुःख ही दुःख

और हम बड़ी आसानी से कह देते

उनको दुःख सहने की आदत है...

वे सुनते अभाव का महा-आख्यान

वे गाते अपूरित आकांक्षाओं के गान

चुपचाप सहते जाते जुल्मो-सितम

और हम बड़ी आसानी से कह देते

अपने जीवन से ये कितने सतुष्ट हैं...

वे नही जानते कि उनकी बेहतरी लिए

उनकी शिक्षा, स्वास्थय और उन्नति के लिए

कितने चिंतित हैं हम और

सरकारी,  गैर-सरकारी संगठन 

दुनिया भर में हो रहा है अध्ययन

की जा रही हैं पार-देशीय यात्राएं

हो रहे हैं सेमीनार, संगोष्ठिया...

वे नही जान पायेंगे कि उन्हें

मुख्यधारा में लाने के लिए

तथाकथित तौर पर सभ्य बनाने के लिए

कर चुके हजम हम

कितने बिलियन डालर

और एक डालर की कीमत

आज पचपन रुपये  है...!

                                            (मौलिक अप्रकाशित और अप्रसारित रचना ) अनवर सुहैल

Views: 640

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by anwar suhail on July 4, 2013 at 9:21pm

आप सभी का आभार व्यक्त करता हूँ कि आपने मेरी कविता के मर्म को बूझकर मुझे सतत सृजन-रत रहने के लिए प्रेरित किया है


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 3, 2013 at 10:31pm

जिस गंभीरता से यह रचना व्यंग्य करती है उसका कोई पारावार नहीं है.

जिस दुखद सच्चाई की ओर यह इंगित करती है वह विकास के नाम पर अपनाये गये काइंयाँपन को उजागर करती है. 

जिनके लिए जो कुछ हो रहा है उन्हीं को नहीं मालूम कि वे बिम्ब हैं ! और जो ये सब कर रहे हैं उनको मालूम है कि यह बिम्ब ही उनका ज़रिया है. इस ज़रिये को कौन हाथ से जाने देगा भला ? तभी तो रचना में उद्धृत डॉलर के मूल्य में तेज़ी से इज़ाफ़ा हुआ, ताकि उगाही के रुपयों में मूल्य दिखे तो सनद रहे.. .

इस प्रखर सोच को शब्द देने के लिए आपको हार्दिक बधाई अनवर सुहैलजी.. .

सादर

Comment by वेदिका on June 20, 2013 at 9:24pm

तथाकथित तौर पर सभ्य बनाने के लिए

कर चुके हजम हम

कितने बिलियन डालर

और एक डालर की कीमत

आज पचपन रुपये  है...! ..........नितांत सत्य 

 आपको हार्दिक बधाई!! 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 20, 2013 at 2:55pm

आदरनीय अनवर जी ...इस बेहद संजीदगी से लिखी रचना जो यथार्थ के धरातल पर बिलकुल खरी उतरती है के लिए आपको हार्दिक बधाई 

Comment by बृजेश नीरज on June 19, 2013 at 11:07pm

वाह! और उस पचपन रूपए में नेताओं के हिसाब से ऐसे लोग डेढ़ दिन का खाना खा सकते हैं। कितना खाना हजम कर गए। हाजमोला लेते होंगे हर कौर के बाद!
मेरी हार्दिक बधाई ऐसी सुंदर रचना के लिए!

Comment by ram shiromani pathak on June 19, 2013 at 9:52pm

आदरणीय  अनवर जी,  बहुत ही सुन्दर रचना  //हार्दिक  बधाई//सादर 

Comment by विजय मिश्र on June 19, 2013 at 11:57am
अनवर भाई !
फिर आपने अपनी कलम से एक जलता हुआ सवाल हमारे सामने उछाल दिया और उसके लपट में झुलसते और सरकारी -गैरसरकारी योजनाओं से महरूम उसके असली हकदार गरीब-गुरूवा की जमीनी सच्चाई भी रखी और यह भी कि आज का समुन्नत और प्रगतिशील सक्षम समाज कितनी सहजता से अपनी ओछी दृष्टि से इन्हें अनदेखा करता है ? शुक्रिया .
Comment by coontee mukerji on June 18, 2013 at 12:55pm

वे नही जानते कि उनकी बेहतरी लिए

उनकी शिक्षा, स्वास्थय और उन्नति के लिए

कितने चिंतित हैं हम और

सरकारी,  गैर-सरकारी संगठन 

दुनिया भर में हो रहा है अध्ययन

की जा रही हैं पार-देशीय यात्राएं

हो रहे हैं सेमीनार, संगोष्ठिया...

वे नही जान पायेंगे कि उन्हें

मुख्यधारा में लाने के लिए

तथाकथित तौर पर सभ्य बनाने के लिए

कर चुके हजम हम

कितने बिलियन डालर

और एक डालर की कीमत

आज पचपन रुपये  है...!

................सच्चाई बयां  करते हुए क्या व्यंग्य मारा है अनवर जी .यह सच है कि एक गरीब आदमी को रूखी सूखी रोटी खाते हुए देख हम कितने आसानी से कह देते हैं कि वह कितना सुखी है ......लेकिन कोई तो उन से पूछे...? सादर / कुंती

Comment by Shyam Narain Verma on June 18, 2013 at 12:49pm
आदरणीय ,

 

बहुत ही समसामयिक और शानदार प्रस्तुति।   हार्दिक बधाई स्वीकारें।  

Comment by aman kumar on June 18, 2013 at 11:27am

शानदार प्रस्तुति।   हार्दिक बधाई स्वीकारें।  सादर,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
10 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
11 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
11 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service