वो दिखे ही नहीं इन दिनों
दूज का चन्द्रमा हो गए
इतने बीमार हम भी नहीं
अपनी खुद ही दवा हो गए
हैं सु-फल आपकी दृष्टि के
क्या थे हम और क्या हो गए
लोग सुनते हैं अब शौक से
अपने चर्चे कथा हो गए
कल की किलकारियां याद हैं
दर्द देखो युवा हो गए
खेल कर के कहीं रख दिया
यार,हम झुनझुना हो गए
अक्स चेहरे का आँखों में है
हम स्वयं आइना हो गए
____________प्रो.विश्वम्भर शुक्ल
(मौलिक और अप्रकाशित )
Comment
अतिसुन्दर,.............बधाई स्वीकार करेँ
आ0 विश्वम्भर सर जी, ‘अक्स चेहरे का आँखों में है, हम स्वयं आइना हो गए‘ अतिसुन्दर, बधाई स्वीकारें। सादर,
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