आह करते हैं ,वाह करते हैं
लोग हैं बस ,तबाह करते हैं
रख के नफरत चाशनी में वो
प्यार क्या बे-पनाह करते हैं
कहके पैगाम दोस्ती का है
पीठ पीछे गुनाह करते हैं
समझिए कुछ तो होनेवाला है
जब वो तिरछी निगाह करते हैं
आपकी नेकियों से उनको क्या
काम है उनका स्याह ,करते हैं
_________प्रो.विश्वम्भर शुक्ल ,लखनऊ
(मौलिक ,अप्रकाशित )
Comment
कहके पैगाम दोस्ती का है
पीठ पीछे गुनाह करते हैं
बहुत गहरी सोच के साथ रची गयी है ........
आभार
आदरनीय बिश्व्म्भर जी ..बहुत ही अच्छी ग़ज़ल ...
रख के नफरत चाशनी में वो
प्यार क्या बे-पनाह करते हैं खास रूप से पसंद आया
अच्छा कहा है।
बधाई, विश्वम्भर जी।
विजय निकोर
बहुत ही सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!
आ0 विश्वम्भर जी,
सुंदर रचना ............................ बधाई
आ0 विश्वम्भर जी, बहुत सुन्दर रचना //हार्दिक बधाई
आ0 विश्वम्भर सर जी, वाह! बहुत सुन्दर गजल हुई है। हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,
रख के नफरत चाशनी में वो
प्यार क्या बे-पनाह करते हैं ... क्या कहने है महोदय!
रख के नफरत चाशनी में वो
प्यार क्या बे-पनाह करते हैं ...............कितनी सच्ची बात कही है . सादार / कुंती.
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ.............. |
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