’’वेगवती छन्द’’
इसमें विषम चरण में तीन सगण-(112) तथा एक गुरू-(2) तथा
सम चरण में तीन भगण-(211) तथा दो गुरू-(22) होते हैं।
.1.
कण कारक ज्यों मन कृष्णा। कारण कृष्ण कमाल सुतृष्णा।
जन.लोक अतीव नसाना। घोर. विरोध सजाय मसाना।।
जगती तल-अम्बर-वर्षा। बाढ़-हुताशन ज्यों यम हर्षा।
अब तो मन सोच सुकर्मा। कार्य सुहाय अघोर.विकर्मा।।
.2.
मन राम सुनाम विचारो। मानव से नित प्यार सॅवारो।
वन-बाग-सुभाष सुधारो। कर्म-सुधर्म सदा मन धारो।।
रख हाथ मशाल जला री। सोच मना कित काम पधारी।
कर याद सुदर्शन धारी। दाह करे तम संकट भारी।।
के0पी0 सत्यम/ मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
मैं लेखन की इस छन्द कला को ज्यादा नही समझता ,
परन्तु पढ़ने पर कुछ कुछ समझ आने लगा है ,
आपको बधाई !
बहुत सुंदर छ्न्द , आप हमारे ज्ञानकोष की वृद्धि कर रहे हैं केवल जी , आभार / कुंती
एक नए छंद से परिचय कराने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय केवल जी!
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ……………… |
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