For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मैं नदी –
पहाड़ों से उतरी,
उन्मुक्त बहती
कल कल करती मतवाली
मैं नदी -
गाँव खलिहानों से होती
बच्चों की किलकारियों सी,
खेतों में ठुमकती
मैं नदी -
सरदी की धूप,
षोडसी की चोटी सम लम्बी
लहराती इठलाती बलखाती
मैं नदी जो कभी थी.
2
समय का बदलता रूप -
हाइटेक का ज़माना,
तरक्की की चरमसीमा,
बलिदान स्वरूपा
मैं नदी अधुना.

झुलसती गरमी
बीच शहर,
कूड़े का ढेर
अछूत सी पड़ी,
मैं नदी अधुना.

सीवर का पानी
रगों में बहता,
मुँह मारता श्वान,
मैं नदी अधुना.

नाना रोगों से ग्रस्त,
केंसर का मरीज,
पुल के नीचे ठहरी,
मैं नदी अधुना.

ध्यान लगाती,
आत्मा को टटोलती,
सागर मिलन को तरसती,
मैं नदी अधुना.

3
मेरा भविष्य -
कौन नदी ? कैसी नदी ?
विद्यार्थियों के पाठ्यक्रम में
प्रश्नचिह्न अनेक ? ? ?
कविता की किताबों में
लिखी मेरी हसीन गाथा,
सरकारी दस्तावेज़ों में
मेरा धुंधला अस्तित्व !
आने वाली पीढ़ी
धरती खंगालेगी,
नाले के पानी पर
लम्बी चौड़ी रिपोर्ट लिखेगी
मैं नदी, यही मेरा भविष्य !

4

परिणाम –
इस अवहेलना का
प्रतिकार कर जाऊँगी,
मिटते मिटते
मानव सभ्यता को
मिटने का
पुरस्कार देती जाऊँगी.
(मौलिक व अप्रकाशित रचना)

Views: 3664

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वेदिका on June 26, 2013 at 2:09am

नदी की व्यथा! क्या नही का अतीत था अपार जल राशी जिसे देखते ही नत होने का मन होता था और आज नालों में तब्दील हो रही है और इस सब के मूल में केवल मानव सभ्यता!

चेतनामयी अभिव्यक्ति पर बधाई!!   

Comment by MAHIMA SHREE on June 25, 2013 at 11:32pm

नदी की  विभिन्न दशा हमारे सभ्यता के   हर काल की कहानी सुना रही हैं  ... हम क्या थे अब क्या हो गए है???? और शायद इस शाप के भागी भी हैं ..सादर ..बहुत ही चिंतनीय अभिवयक्ति ..

Comment by coontee mukerji on June 25, 2013 at 5:19pm

सौरभ जी , आपका मार्दर्शन हमें लिखने और पढ़ने की प्रेरणा देती है. अन्यथा हम झूठे दंभ में भूले रहते हैं कि दो शब्दों को जोड़ लिया और कविता बन गयी .आपका हार्दिक आभार.

Comment by coontee mukerji on June 25, 2013 at 5:12pm

आपकी सलाह हमें सदा मान्य है.आभार.

Comment by अरुन 'अनन्त' on June 24, 2013 at 10:20pm

आदरणीया आपके कथन ने मर्म को स्पर्श कर लिया, आपने नदियों की पीड़ा को शब्द के साथ साथ आवाज भी दे दी है, हार्दिक बधाई स्वीकारें

Comment by बृजेश नीरज on June 24, 2013 at 9:35pm

आदरणीय कुंती जी विभिन्न कालों में बंटी नदी की यह व्यथा आपने भावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत की है। इस प्रयास के लिए आपको ढेरों बधाई।
रचना को शिल्प के स्तर पर एक बार फिर जांच लें। कुछ संशोधनों बाद यह और निखर आएगी।
सादर!

Comment by Savitri Rathore on June 24, 2013 at 7:57pm

कुंती जी आपने नदी के विभिन्न रूपों का जो चित्रण किया है ......उसकी पीड़ा को जो स्वर दिया है,निस्संदेह वह प्रशंसनीय है .......आपकी ये रचना हमारे अंतस को झकझोरती है और हमें भविष्य की आपदाओं के प्रति सचेत करती है ,यदि हम विकास के  पर प्रकृति के साथ मनमानी करने से बाज नहीं आयें तो हमें तथा भावी पीढ़ियों को गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। बधाई हो !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 24, 2013 at 5:02pm

यह कितनी बड़ी विडंबना है, जब तक हम ’तथाकथित’ अशिक्षित थे नदियाँ हमारे लिये माँ थी. नदियाँ ही क्यों प्रकृति के सभी अवयवों से अपना साहचर्य का नाता था. हम सुखद सहवास में रहा करते थे.

आज जिस ’शिक्षा’ से अनुप्राणित हुए हैं,  हमारे विचारों में प्रयोक्ता का दानवी भाव आ गया है ? हम साहचर्य के उन्नत और उत्सर्गी भाव भूल स्वयं को हरकुछ पर बलात् आरोपित करते हैं. हम ऐसे शिक्षित हुए कि नदियों के प्रति हमारे भाव बदल गये हैं. हमारे लिए ये नदियाँ ’गार्बेज डक्ट’ बन कर रह गयीं हैं.

आदरणीया कुन्ती जी, आपकी इन क्षणिकाओं के लिए आपको सादर धन्यवाद.

यह अवश्य है कि शिल्प के तौर पर संप्रेषणीयता के लिहाज से कुछ और गठन की आवश्यकता है. 

सादर

Comment by coontee mukerji on June 24, 2013 at 4:51pm

विजय जी , आपका बहुत बहुत धन्यवाद. सादर / कुंती.

Comment by coontee mukerji on June 24, 2013 at 4:48pm

अमन जी , यह बात आपने सही कहा है , नदियों की जितनी दुर्दशा मैंने भारत में देखी है अन्य किसी भी देश में ऐसा नहीं होता  है. अक्सर लोग अपने घर की गंदगी नदी में डाल देते हैं. जो कुछ मैंने अपनी रचना में लिखी है यह लखनऊ की नदी की आत्मकथा है.सादर./कुंती

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण भाईजी, आपने प्रदत्त चित्र के मर्म को समझा और तदनुरूप आपने भाव को शाब्दिक भी…"
9 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"  सरसी छंद  : हार हताशा छुपा रहे हैं, मोर   मचाते  शोर । व्यर्थ पीटते…"
14 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे परिवेश। शत्रु बोध यदि नहीं हुआ तो, पछताएगा…"
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
yesterday
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Dec 14
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service