व्यथा!
तुम
मन के किबाड़े
खोलना मत
खोलना मत
सौ तरह के
व्यंग होगे
धूल धूसर
संग होंगे
भाव कोई गैर
अपनी
भावना में
घोलना मत
घोलना मत
व्यथा!
खुद से कहना
खुद ही सहना
तेरी
अंतर यातना
पर किसी से
बोलना मत
बोलना मत
व्यथा!
गीतिका 'वेदिका'
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय चन्द्र शेखर जी!
मुक्त कंठ समीक्षा हेतु आभारी हूँ आपकी
सादर !!
इतना गहन अंतर्प्रेक्षण, नमन आपकी लेखनी को।
प्रयास को सराह कर आशीष देने हेतु आपकी कृतग्य हूँ आदरणीय सौरभ जी!
आपका बहुत बहुत आभार आदरनीय बसंत नेमा जी!
इस अच्छे प्रयास केल् इए बधाइयाँ आदरणीया गीतिकाजी.
बहुत सुन्दर रचना बधाई ..
आपका बहुत बहुत शुक्रिया आदरनीय रविकर जी!
आपने इतनी प्यारी और काव्यात्मक प्रतिक्रिया के लिए। और आपने छंद के माध्यम से प्रेरणा दी है आपका बहुत बहुत आभार।
शुभकामनाएं-
बाड़े में घुरघुर करे, भरे धरे अवसाद |
काली साया सी बढ़े, फोड़ा भरे मवाद |
फोड़ा भरे मवाद, याद वह रूह कंपाये |
मक्खी मय जीवाणु, गन्दगी भी फैलाए |
रविकर की अरदास, शीघ्र बीते दिन गाढ़े |
सुखमय सरल भविष्य, तोड़ कर आँय किबाड़े ||
गजब आदरणीया-
गजब-
लय सुर ताल और भाव अद्वितीय -
बधाईयाँ
आदरणीय प्रदीप जी! आपकी भाव भीनी बधाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
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