क्या हुआ, कैसे हुआ ..
या हुआ अचानक ..
देखते देखते बदल गया..
स्वयं का कथानक ..
परछईओं ने भी छोड़ दिए ...
अब तो अपना दामन ..
परिंदों ने भी बंद किये हैं ..
स्वयं का कोलाहल..
पहचानती थी वह ईंट भी ..
जो ठोकर खाकर भटक गयी..
पथ पर रहने के बजाए..
पथ का रोड़ा बन गयी..
अभिलाषाओं का कुंदन हुआ..
आशाओं का तुषार पात ..
तड़ित दमकी और गिर पड़ी ..
उठकर देखा तो मौत खड़ी..
उसने भी नकार दिया..
पहचानने से इंकार किया ..
आशाओं को बुझा दिया..
ले जाने से इंकार किया..
सबकुछ बदला बदला है..
सबके बदले तेवर हैं..
अपना कौन.. कौन बेगाना..
जाना कौन.. कौन अन्जाना ..
अब यहाँ नहीं है कोई नायक ..
दिखता नहीं है कोई सहायक ..
क्या हुआ .. कैसे हुआ.. या हुआ .. अचानक ..
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
Saurabh Pandey sir jee... आपके मार्गदर्शन के लिए दिल से आभार .... में कोशिश करूँगा.. धन्यवाद् ...
आपकी प्रस्तुति के लिए बधाई, आमोद भाई. रचनाकर्म में शिल्पगत व्यवहार को और साधे जाने की आवश्यकता है.
शुभेच्छाएँ
आदरणीय अमन भाई में ओत प्रोत हूँ आपके स्नेह से ... बहुत बहुत शुक्रिया व आभार ...
आदरणीय मुकर्जी जी आपका आभार .
गीतिका 'वेदिका' जी आपका आभार ..
अगर शाम हो ,
आप हो सामने अपने ,
आपके मुख से सुने आपकी कविताये ,
पर अभी तक ये भी न हो सका !
अब अपने दिल का हाल क्या बताये !
आपकी कविता देर से पड़ने को माफ़ी .......
आभार , आपकी तारीफ अब लिख कर नही करूंगा सामने ही बात होंगी !
मौत जब सामने ताण्डव नृत्य कर रहे हों , तो कौन अपना कौन पराया ........बहुत अच्छा लिखा है अमोद जी .
अंतर्द्वंद में किंकर्तव्यंविमूढ़म को दर्शाते हुए जो मानसकिता बन पड़ती है, चित्रण पर बधाई
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