!! मेरी लाडो !!
“ मेरी लाडो ” समर्पित है उन तमाम बहन बेटियो को जो किसी न किसी हादसो के कारण से अपने वजूद अपने अस्तिव को भुला चुकी है या फिर हार मानके अपनी किस्मत को दोष दे रही है । ये एक प्रयास है शक्ति को उसकी शक्ति याद दिलाने का उसे उसके वास्तिवक रुप मे लाने का । ”
चल अब उठ मेरी बहना मेरी बेटी मेरी लाडो ।
तुझे बनना है अब दुर्ग़ा माँ काली माँ मेरी लाडो ।
बहुत सह चुकी चुप रह चुकी, अब हुंकार भर लाडो ।
पोछले आँसू अब आँखो मे ज्वाला भर मेरी लाडो ॥
छोड के घर बाबुल का तूने घर उसका बसाया है ।
अपर्ण तुने किया सर्वश प्यार अपना लुटाया है ।
तू तकती रही रातो को राहे अपने साजन की ।
वो सोता रहा आगोश मे तेरी सौतन की ।
तू घुटती रही मरती रही सिसकती रही लाडो
फिर भी शिकवा न शिकायत की तुने कभी लाडो ।
चल अब उठ मेरी बहना मेरी बेटी मेरी लाडो ।।
उतार चुँडीया हाथो मे अब खडग् धर मेरी लाडो ॥1॥
सहे सौ दर्द जब तुने तो, एक इंसा को जाया है ।
जागी रात भर खुद तू , मगर उसको सुलाया है ।
बन के हैवान उसने ही, तुझपे जुल्मो को ढाया है ।
सताया है तुझे जिसने, उसे अब तु सता लाडो ।
चल अब उठ मेरी बहना, मेरी बेटी मेरी लाडो ।
दिया है जन्म तुने ही, तो अब हर प्राण मेरी लाडो ॥ 2 ॥
लुटेरा तेरी अस्मत का, अब बच के न जा पाये ।
गिरे वो हाथ धरा पे जो तेरे दामन को छू जाये ।
दुशासन हो कोई भी अब वो बच के न जा पाये ।
अलग हो शीश वो धड से बुरी नजर जो उठाये ।
यहा बैठा है घर घर मे एक रावण मेरी लाडो
ना आयेगा कोई राम न हनुमंत मेरी लाडो ।
बन के ज्वाला जलाना है तुझे अब लंका मेरी लाडो ।
चल अब उठ मेरी बहना मेरी बेटी मेरी लाडो ।।
बन के दामिनी अब , तुझको गिरना है मेरी लाडो ॥ 3 ॥
गुजर गई रात अब काली नया सवेरा आया है ।
बिता पतझड का ये मौसम की अब रितुराज आया है ।
छिना है हक जो तेरा, उसे अब फिर से पाना है ।
मिटा है जो वजूद तेरा उसे फिर से बनाना है ।
भुलाकर हादसो को अब तुझे जीना है मेरी लाडो ।
दिशाहीन इस नदी को नई दिशा देना है मेरी लाडो ।
चल अब उठ मेरी बहना मेरी बेटी मेरी लाडो ।।
तुझे बनना है लक्ष्मीबाई रानी दुर्गावती लाडो ।। 4 ॥
उठा कर हाथ को तुझको अब ये संकल्प करना है ।
न अहिल्ल्या की तरह तुझको अब पाषाण बनना है ।
न सीता की तरह तुझको अब अग्नि पे चलना है ।
न हारी जायगी अब जुआ मे कोई भी लाडो ।
तु अब अबला नही जो हाट मे बेची जायेगी लाडो
लगा ललकार ऐसी की तीनो लोक काँपे मेरी लाडो ।
तु शक्ति है तुझे अब शक्ति दिखाना है मेरी लाडो ।। 5॥
चल अब उठ मेरी बहना, मेरी बेटी मेरी लाडो ।
तुझे बनना है अब दुर्ग़ा माँ काली माँ मेरी लाडो ।
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आ0 श्री सौरभ सर , मै आप का क्षमा प्रार्थी हू , ये मेरे लेखन की त्रुटी है पर मेरा ऐसा कतई प्रयास या उद्देश्य नही था की मै भबिष्य मे आप के आशीष से वचित हो जाऊ । मै अभी नौसिखिया हू और आप के सामने मै कुछ भी नही हू ,,,,,,एक बार पूरे दिल से आप से क्षमा चाहता हू । भबिष्य मै आप का आशीष सदा मिलता रहे ...........
//आप के सुझाव पर अमल किया जायेगा//
इस तरह के वाक्यों से बचने का प्रयास करें आदरणीय जो वाच्य के अनुसार कर्मवाच्य के हों. अन्यथा आपकी रचनाओं पर आवश्यक सुझाव के प्रति अनाग्रही रहेंगे.
आपके इस तरह से लिखने से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि आपको मेरे सुझाव पसंद नहीं आये या आप मेरे सुझावों आदि को प्रश्रय देना नहीं चाहते.
शुभम्
आ0 राम शिरोमणी जी रचना आप को पसन्द आयी उसके लिये बहुत बहुत धन्यवाद
आ0 जितेन्द्र जी आप की शुभकामनाओ के लिये बहुत बहुत आभार .धन्यवाद
आ0 बसंत नेमा जी ,बहुत सुन्दर रचना है //हार्दिक बधाई
आ0 रविकर जी बहुत बहुत धन्यवाद
आ0 सौरभ सर ... रचना को पसन्द किया उसके लिये बहुत बहुत आभार , आप के सुझाव पर अमल किया जायेगा ....धन्यवाद
पुरुषवर्ग द्वारा नारीवर्ग के ऊपर हुए/ हो रहे अत्याचारों की अच्छी खबर लेने की कोशिश हुई है. इस तरह का आक्रोश एक सीमा तक उचित भी है. लेकिन दुखती सचाई यही है कि बेटियों पर सबसे क्रूर अत्याचार नारीवर्ग ही करता है. विवाहोपरांत जिस मानसिक प्रताड़ना से बेटियाँ गुजरती हैं या पुरुषवर्ग के तथाथित बेटों द्वारा प्रताड़ित होती हैं उसके पीछे क्या ’मेरा बेटा सर्वश्रेष्ठ’ की मानसिकता नहीं है ? आगे कुछ कहना उचित नहीं.. .
वैसे रचना-प्रयास हेतु यह रचना उचित है. लेकिन शिल्प और काव्यकर्म की कसौटी पर इसे कसना रचनाकार का पहला दायित्व होना चाहिये. ओबीओ के मंच से किसी वाद या मंतव्य को प्रश्रय देने की कोई योजना नहीं है, बल्कि रचनाकार रचनाकर्म हेतु सकारात्मक प्रयास करें और रचनात्मक संवेदशीलता के प्रति आग्रही हों, यह अवश्य है. इस कविता को कविता होने की कसौटी को पार करना अभी शेष है.
शुभेच्छाएँ
बढ़िया बहाव-
शुभकामनायें आदरणीय-
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online