सत्ता मद में चाहिए, येन केन बस वोट,
गधे तो कहे बांप तो,उसमे क्या है खोट |
उसमे क्या है खोट, जो नित भार ही ढोता
सत्ता का वह मीत, बोलता जैसे तोता
जीत पर बदल आँख,बता जनता को धत्ता,
नेता की क्या साख, मिले कैसें भी सत्ता |
(२)
गंगा जल में छुप गये,झट से भोले नाथ,
केदारनाथ धाम में, ढेरों हुए अनाथ |
ढेरों हुए अनाथ, प्रकृति तांडव के चलते
बहती अश्रु की धार,बहुत से प्राण सिसकते
कैसे नरसंहार, देखकर मन हो चंगा,
सतत बहे रसधार, रखो अब पवित्र गंगा |
(3)
सौदा कर ईमान का, बनते रहे अमीर
मरने के ही साथ में,दफन हुई तस्वीर,
दफन हुई तस्वीर,दिखती ना इतिहास में
जिनका रहा जमीर,रहे न धन की चाह में
बिकता रहा गरीब, मिल धनवान ने रोंदा
बनने हेतु अमीर, करे जमीर का सौदा |
(मौलिक व् अप्रकाशित)
-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला
Comment
छंद पसंद आया आपको यह मेरा सौभाग्य है, हार्दिक आभार स्वीकारे आदरणीया कुंती मुकर्जी, एवं सुशीला शिवरण जी | सादर
गंगा जल में छुप गये,झट से भोले नाथ,
केदारनाथ धाम में, ढेरों हुए अनाथ |
ढेरों हुए अनाथ, प्रकृति तांडव के चलते
बहती अश्रु की धार,बहुत से प्राण सिसकते
कैसे नरसंहार, देखकर मन हो चंगा,
सतत बहे रसधार, रखो अब पवित्र गंगा .........सत्य है .......
सामयिक और सशक्त
जिनका रहा जमीर,रहे न धन की चाह में
बिकता रहा गरीब, मिल धनवान ने रोंदा
बनने हेतु अमीर, करे जमीर का सौदा |
बधाई आदरणीय
कुंडलियाँ छंद के भाव पसंद करने के लिए आपका आभार श्री राम शिरोमणि पाठक जी
जी, आदरणीय सौरभ जी, आदरणीया प्राची जी के शिल्प गत/गेयता सम्बन्धी सुझावानुसार प्रयास अवश्य
करना मेरे हित में ही है | आपका हार्दिक आभार
हार्दिक आभार श्री रविकर जी, -
स्वीकार आभार करे, या दे फिर आभार
प्रतिक्रिया है आपकी, विशिष्ट रचनाकर
बहुत सुन्दर भाव लिए दोहे //हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मन जी //सादर
शुक्रिया श्री अमन कुमार जी
वर्तमान त्रासदी पर छंद रचना पसंद करने के लिए हार्दिक आभार आ. श्री विजय निकोरे जी, श्री अरुण कुमार "अनंत" जी,
एवं आदरणीया गीतिका "वेदिका "जी
सादर |
आदरणीय, आपकी प्रस्तुति के लिए बधाइयाँ. किन्तु जिन शिल्पगत दोषों को आदरणीया प्राचीजी ने साझा किया है उनकी तरफ़ मनोयोग से ध्यान देने की आवश्यकता है.
सादर
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