रूद्र रूप ले आए भोले ,मचा प्रलय से हाहाकार
मानव आया कुदरत आड़े,उजड़ गए लाखों परिवार
यहाँ जिन्दगी चहका करती,अब हैं लाशों के अम्बार
दोहन लेकर आया विपदा,हम मानस ही जिम्मेवार
उमड़ घुमड़ बादल जो आए,छम छम कर आई बरसात
ध्वस्त हुए सब मंदिर मस्जिद,दिन में ही हो आई रात
कुदरत हुई खून की प्यासी, प्रलय मचा है चारों ओर
कुपित शिवा जलमग्न हो गए,आया है कलयुग घनघोर
..............मौलिक व अप्रकाशित...............
Comment
ravikar sir laazwaab
aapne sahi kaha sarkaar jyada jimedaar hai iske liye
aman kumar ji prabandhan bina prakriti ko chede bhi kiya ja sakta hai
Jitendra Pastariya ji hardik abhaar meri rachna ke sath sehmat hone ke liye
सुंदर प्रस्तुति
आज कुदरत भी बोल रही है तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा ,,, हमने उसे जो दिया उसने बही वापस कर दिया .... बहुत सुन्दर रचना , बधाई ....
आदरणीया सावित्री जी:
सामयिक स्थिति पर अच्छी प्रस्तुति के लिए बधाई।
सादर,
विजय निकोर
बढ़िया शब्द संचयन बहना, भावों का बढ़िया सहकार |
सरिता सुन्दर पावन सरिता मचा रही है हाहाकार |
कुदरत से करते ही रहते हम सब मिलकर के खिलवार |
जनता तो कम ही दोषी है, ज्यादा दोषी है सरकार-
दोहन लेकर आया विपदा,हम मानस ही जिम्मेवार
सही कहा आपने ! प्रक्रति का मतलब ही है की उसमे कोई छेड़ छाड़ न हो |
पर सतत विकास के लिए प्राकेर्तिक प्रबंधन भी जरुरी है ...
आभार
केवल प्रसाद जी एवं राम शरिमोनी पाठक जी हार्दिक आभार
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