चाँद सितारों संग, महकी बहारों संग,
देखो चुपके से रात चली है ।
गहरी खामोशी में, ऐसी मदहोशी में ,
दिल में फिर तेरी बात चली है ।
चाँद का जब दीदार करूँ तो ।
दिल के झरोखे से प्यार करूँ तो ।
यादों की महकी बारात चली है ।
पूछो ना काटी कैसे तनहाई ।
याद जो आये वो तेरी जुदाई ।
आँखों से मेरे बरसात चली है ।
थाम के बाहें बाहों में ऐसे ।
चले दो राही राहों में ऐसे ।
जैसे संग सारी कायनात चली है ।
प्यार से बढ़के कुछ भी नही है ।
मै भी नही हूँ तू भी नही है ।
रब से हमे ये सौगात मिली है ।
मौलिक व अप्रकाशित
नीरज
Comment
आदरणीय प्राची जी वैसे मै इन बातों का बहुत ख्याल रखता हूँ ....
पर कभी कभी बात ऐसी हो जाती है की भावनाओं को
प्राथमिकता देनी पड़ती है और शब्दों के साथ समझौता करना पड़ता है ...
बहुत बहुत आभार ।
आदरनीय आदरणीय गीतिका क्यों नही रखते हैं प्यार तो साँसों की
तरह साथ चलता है लोग बदल जाते हैं बस ,,चीजें बदल जाती हैं बस ।
आदरणीय अरुण जी बहुत बहुत शुक्रिया
जीतेन्द्र भाई बहुत बहुत आभार ।
आदरणीय बब्बन जी बहुत बहुत शुक्रिया
हरीश भाई आभार ।
कुन्ती जी बहुत बहुत धन्यवाद ।
जब ह्रदय अपनी हर खुशी के लिए किसी भौतिक प्रेम स्वरुप से ही आश्वस्ति पाता हो तो प्रिय का साथ ही कायनात लगता है... ऐसे ही सांसारिक वैयक्तिक प्रेम को अभिव्यक्त करते ह्रदय के उद्गार..
अब रचना के शिल्प पर एक बात :आख़िरी बंद की आख़िरी पंक्ति में सौगात मिली है...हर बंद के अंत चली है चली है के समान ही साधा जाता तो प्रवाह अंत में कुछ अवरुद्ध होता सा न लगता.
हार्दिक शुभकामनाएं
प्यार से बढ़के कुछ भी नही है ।
मै भी नही हूँ तू भी नही है ।
रब से हमे ये सौगात मिली है ।,,,, बहुत अच्छी बात कही आपने आदरणीय नीरज जी! लेकिन कहाँ लोग रब से मिली इस सौगात को सहेज के रखते है,, जब उनके हाथ से ये सौगात निकल जाती है तो हाथ मलते रह जाते है।
बधाई इस सुन्दर प्रस्तुति पर!!
बेहतरीन भाई जी बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति बधाई इस सुन्दर प्रस्तुति पर.
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