अपरिचय, संवेदना है, भावना है ,
उसे क्या जो पुष्प से पत्थर बना है !
मिले उनको हर्ष के बादल घनेरे ,
एक बंजर-व्योम तो हम पर तना है !
चित्र है उत्कीर्ण कोई चित्त पर ,
ठहर जाती जहां जाकर कल्पना है !
सूर्य की ये रश्मियाँ बंधक बनीं हैं
एक अंधी कोठरी मे ठहरना है !
रास्ते अब स्वयं ही थकने लगे हैं
पूछता गंतव्य मन क्यों अनमना है ?
_______________________प्रो. विश्वम्भर शुक्ल
(मौलिक और अप्रकाशित )
Comment
वाह मजा आ गया आदरणीय, इतनी सुन्दरता और सरलता से लिखी पंक्तियों ने मंत्रमुग्ध कर दिया. हार्दिक बधाई स्वीकारें.
अपरिचय, संवेदना है, भावना है ,
उसे क्या जो पुष्प से पत्थर बना है ! ... कोटिशः बधाई इस पंक्ति हेतु.
मिले उनको हर्ष के बादल घनेरे ,
एक बंजर-व्योम तो हम पर तना है !
सुंदर बिम्ब से सजी सुंदर कविता पर बधाई!!!
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